Monday 29 November 2010

मेरा इश्क

हर बात आजमाई गयी है बड़ी गौर से,
मेरा इश्क गुजरा है कुछ ऐसे भी दौर से.

बड़ी खोकली है बुनियाद -ए- ऐतबार क्या करे,
मेरे लफ्ज तक जांचे गए है किसी और से.
मेरा इश्क गुजरा है कुछ ऐसे भी दौर से.

इश्क की बात है, नाजुक है, नजाकत जरुरी है,
ये मसले भी कभी हल हुए है बहस औ शोर से.
मेरा इश्क गुजरा है कुछ ऐसे भी दौर से.

Continue....

Saturday 20 November 2010

ये कैसी तबीयत दी

ये कैसा दिल दिया खुदा, ये कैसी तबीयत दी,
क्यों मासूम सा एक दिल दिया क्यों साफ़ नीयत दी.


वो दोस्त भी अब शुमार है कुछ मेरे अपनों में,
हौसला माँगा जो मैंने, उसने नसीहत दी.
क्यों मासूम सा एक दिल दिया क्यों साफ़ नीयत दी.

दुवाये तहे दिल की और तजुर्बा उम्र का,
बेहतर होगा जो वालिद ने ऐसी वसीहत दी.
क्यों मासूम सा एक दिल दिया क्यों साफ़ नीयत दी.

इंसानों से जुडा है जरा संभलकर रहो 'शफक',
चौखट को लांघने से पहले माँ ने हिदायत दी.
क्यों मासूम सा एक दिल दिया क्यों साफ़ नीयत दी.

Monday 25 October 2010

तुम्हारा फैसला होगा...


कितनी कुरबत होगी, कितना फासला होगा,
जो भी होगा इस रिश्ते में अब तेरा फैसला होगा.


बेहतर होगा न जिक्र करो फुरकत की वजहों का,
खामखा लफ्जो के छिन्टोसे तेरा दामन मैला होगा.
जो भी होगा इस रिश्ते में अब तेरा फैसला होगा.

मुझको पता है कुछ लफ्ज मेरे तुझको रुला रुला देंगे,
अब तक शायद जिनसे दिल थोड़ा बहोत बहला होगा.
जो भी होगा इस रिश्ते में अब तेरा फैसला होगा.

झूटी हँसी ने छुपा लिए होंगे कुछ दर्द भी तेरे,
आँखों का काजल पर कुछ तो फैला होगा.
जो भी होगा इस रिश्ते में अब तेरा फैसला होगा.

रातभर महकते रहे तेरी खुशबू से मेरे ख्वाब,
शाख-इ-नाउम्मीद पे कोई अरमान खीला होगा.
जो भी होगा इस रिश्ते में अब तेरा फैसला होगा.
मायने


तुम्हारे न लौटकर आने के फैसले ने,
मेरी ज़िंदगी के मायने बदल दीये.


अब किसी का इंतजार नहीं रहता,
किसीके आने और जाने से फर्क नहीं पड़ता अब,
बहोत भीड़ में भी बहोत अकेला होता हु मै.
आँखे भी किसी चेहरे को तलाशती नहीं अब,
अब मै अपना हर काम अपने वक़्त पे करता हु,
आजकल चाँद भी बस चाँद है,
उस एक दाग के अलावा कुछ भी नहीं बचा उसके पास,
कमरे में कुछ ख्याल रहते है सुस्त, थके हारे,
और कुछ अधमरी गज़ले डायरी के कफ़न में लिपटी हुई,
पड़ी रहती है मेज पर,
न ही कोई पढ़ता है और न ही कोई समझ पाया अब तक,
अब मै भी गौर नहीं करता उनपर,
क्या होगा हर्फ़ हर्फ़ बनी थी, हर्फ़ हर्फ़ बिखर जाएँगी.
बस एक चीज़ नहीं बदली तुम्हारे जाने के बाद,
तुम्हारी यादे आज भी आती है रोजाना,
कुछ देर बैठती है साथ, पुरानी बाते करती है,
कुछ गुज़ारे हुए हसीं मंज़र ताज़ा करती है,
और कुछ रुला देती है मुझको.
कुछ ऐसे गुजरते है दिन,
मेरे कमरे का आइना भी नहीं पहचानता अब मुझको,
उम्मीदों ने धीरे धीरे दम तोड़ दिया है,
अब कोई वजह नहीं दिखती जिंदा रहने की,

तुम्हारे न लौटकर आने के फैसले ने,
मेरी ज़िंदगी के मायने बदल दीये.

Saturday 16 October 2010

कुछ शिद्दत भी हो मिलने की


कुछ शिद्दत भी हो मिलने की, और मुफीद हालात भी हो,
नजरो की कुछ शर्म घटे तो दिल से दिल की बात भी हो.

लफ्जो की जरुरत कतई नहीं है, लुत्फ़ भी कम हो जायेगा.
शर्म-ओ-हया हो, डर हो थोडा, कुछ ऐसे तालुकात भी हो.
नजरो की कुछ शर्म घटे तो दिल से दिल की बात भी हो.

बंदिशे तू तोड़ जरा, कुछ इश्क को भी इतराने दे,
उलझे उलझे दिन गुजरे कुछ बहकी बहकी रात भी हो.
नजरो की कुछ शर्म घटे तो दिल से दिल की बात भी हो.

Tuesday 5 October 2010

शायद...

एक चेहरा रहेगा धुन्दला सा, यादो पे धुल जमी होगी,
सब कुछ तो रहेगा दामन में, बस एक चीज़ की बहोत कमी होगी.


कुछ तारीखों पे शायद दिल कुछ देर के खातिर भर आये,
किसी शाम अचानक तन्हाई में बीते कल पे पछताए.
कभी नाम सुनो तो शायद दिल की धड़कन बढ़ जाएगी,
कभी रात अँधेरे यादे मेरी तुमसे देर तलक लड़ जाएगी,
कभी यु ही अचानक मेरी लिखी गझलो को सहलाओगी,
फिर चाँद को देखोगी जी भरके और खुदको बहलाओगी.
हर बात पे मेरी बात तुम्हे तो याद यक़ीनन आएगी,
कभी तुमको रुला रुला देगी, कभी तुमको कुछ समझाएगी.
मेरे अशआर सारी बीती बाते जिन्दा कर देंगे,
उन शामो को दोहराएंगे, वो राते जिंदा कर देंगे.
तुम कोशिश करना फिर भी मुझको भूल ही जाने की,
मेरी यादे, बाते मेरी और उस रब्त को दफनाने की.
किसी ख्वाब के माफिक धीरे धीरे मै धुन्दला हो जाऊंगा,
मसरूफ रहोगी तुम औरो में और मै यादो से भी खो जाऊंगा.
फिर शायद वो तारीखे भी तुम्हारे जहन से उतर जाये,
मेरा वजूद, मेरे अल्फाज़ कागज़ से गिरकर बिखर जाए,
शायद वो चाँद भी तुमको मेरी यादो तक न ला पाए,
न मेरी गज़ले तुमको गोद में अपनी सुला पाए.
तब कुछ वक़्त अकेले कमरे में, मेरी गज़लों की सोबत में,
दो चार कतरे आंसू के अपनी आंखोसे बहा देना,
हो पाए अगर मुमकीन तुमसे पुरे दिल से एक दुआ देना.
अब मेरी साँसे रुक जाये, दिल की आवाज़ भी थम जाये,
तेरी तस्वीर को तकता रहू, और बस उस पल ही दम जाए....

Sunday 26 September 2010

इश्क बेघर है


कैसे हालात है, कैसा मंजर है,
हममे दिवार है और इश्क बेघर है.


वो बहोत देर से चुप है, बात गहरी होगी,
हम जानते है ख़ामोशी समंदर है.
हममे दिवार है और इश्क बेघर है.

मेरी रुखसत पे खामोश था वो कल,लेकिन,
आज रोया है बहोत, हालत अब कुछ बेहतर है.
हममे दिवार है और इश्क बेघर है.

जो खोने का डर था वो तो लुट गया,
अब क्यों सहमे है, अब क्या डर है.
हममे दिवार है और इश्क बेघर है.

Thursday 16 September 2010

यु तो कहने को

यु तो कहने को साथ चलते रहे,
वक़्त के साथ सब बदलते रहे.


इश्क को जूनून औ नशा कहनेवाले
क्या पता कैसे खुद संभलते रहे.
वक़्त के साथ सब बदलते रहे.

दिल तो टुटा भी, बिखर भी तो गया,
ख्वाब टुकडो में भी मगर पलते रहे.
वक़्त के साथ सब बदलते रहे.

तेरी मासूमियत भी खो गयी है कही,
मेरे अरमान भी सब जलते रहे.
वक़्त के साथ सब बदलते रहे.

मोम के थे क्या वो सभी वादे,
कतरा कतरा जो पिघलते रहे.
वक़्त के साथ सब बदलते रहे.

Wednesday 1 September 2010

कभी कभी.......

रास्ते पे देखा, मुस्कुराया,दिखा दिया हाथ कभी कभी.
इसको भी कहा है हमने मुलाकात कभी कभी.


कितने डरे हुए थे लफ्ज, कपकपा रहे थे होटो पे,
आँखे बेबाक हो बताती है पर जज्बात कभी कभी.
इसको भी कहा है हमने मुलाकात कभी कभी.

सुना है सीने से लगाकर रखता है वो मेरी गज़लों को,
कागज की कीमत बढ़ा देते है खयालात कभी कभी.
इसको भी कहा है हमने मुलाकात कभी कभी.

रात को चाँद देखना हमे भी है बहोत अजीज,
पर अच्छी लगती है पूरी अंधेरी रात कभी कभी.
इसको भी कहा है हमने मुलाकात कभी कभी.

उसके करीब था बहोत और बहोत फासले भी थे,
ऐसे मंज़र भी हुए है 'शफक' के साथ कभी कभी
इसको भी कहा है हमने मुलाकात कभी कभी.
दो लफ्ज...

दिल की धड़कन थी तेज बहोत, कैसे थे क्या हालात कहे,
बस दो लफ्जो की सूरत में उसने कितने जज्बात कहे.

झुकी हुई नज़रो की हया, और कुछ हैरानी लफ्जो की,
दोहराते हुए उस मंजर को कैसी बीती क्या रात कहे.
बस दो लफ्जो की सूरत में उसने कितने जज्बात कहे.

उसने संभाले रखे थे कुछ एहसास सदियों से सीने में,
कुछ तासुर ने उसके बोल दिए, कुछ आँखों की बरसात कहे.
बस दो लफ्जो की सूरत में उसने कितने जज्बात कहे.

वो कितना छुपाती है मुझसे, कभी हर्फो को कभी चेहरे को,
अब उसकी तबस्सुम मुझसे, उसके दिल की हर बात कहे.
बस दो लफ्जो की सूरत में उसने कितने जज्बात कहे.

Sunday 29 August 2010

बगैर मेरे......


बगैर मेरे कैसे शाम उसकी गुजराती होगी,
हर एक चीज पे नज़र कुछ देर ठहरती होगी.


आईने पूछते होंगे सबब उदासी का,
वो आज कल यक़ीनन कम ही सवंरती होगी.
हर एक चीज पे नज़र कुछ देर ठहरती होगी.

सुने कमरे में अँधेरे से लिपटकर अक्सर,
आंसुओ के साथ सिसकिया बिखरती होगी.
हर एक चीज पे नज़र कुछ देर ठहरती होगी.

मेरी बातो के सिलसिले जो याद आते होंगे,
उदास शक्ल कुछ देर को तो निखरती होगी.
हर एक चीज पे नज़र कुछ देर ठहरती होगी.

Friday 13 August 2010

हर तरफ.....

हर तरफ दुनियादारी निभाई जा रही है,
बस एक मोहब्बत है जो सताई जा रही है.


कितने बरसो से है दील में उनके इश्क मेरा,
हमारी चीज़ ही हमसे छुपाई जा रही है.
बस एक मोहब्बत है जो सताई जा रही है.

तड़प उनको भी है मुझसे करीब आनेकी,
खामखा क्यों ये बेरुखी जताई जा रही है.
बस एक मोहब्बत है जो सताई जा रही है.

जहन के वईजी से और जुबां के डर से,
दिल के साथ आँखे रुलाई जा रही है.
बस एक मोहब्बत है जो सताई जा रही है.

जो हकीकत है उसको छुपाके सीने में,
जो नहीं है, वो बाते बताई जा रही है.
बस एक मोहब्बत है जो सताई जा रही है.

पहले छुपा लेते थे इश्क के तासुर 'शफक'
आज चेहरे से मोहब्बत लुटाई जा रही है.
बस एक मोहब्बत है जो सताई जा रही है.

Tuesday 10 August 2010

फासला

वो बड़े अहतराम से आज मिला मुझसे,
शायद कर लिया उसने भी फासला मुझसे.


उसकी शिकायते निशानी थी उससे कुर्बत की.
अब नहीं रखता है वो कोई गिला मुझसे.
शायद कर लिया उसने भी फासला मुझसे.

वो छुपाता है इश्क, अश्क और एहसास सभी,
और चाहता है हर एक सिलसिला मुझसे.
शायद कर लिया उसने भी फासला मुझसे.

Continue.....

Sunday 1 August 2010

कुछ बाते जो...

कुछ बाते दिल में दबी रही, न हमने कही, न तुमने कही.
बेजुबां कई तकलीफे, कुछ तुमने सही, कुछ हमने सही.

फुजूल हमने गवां दिए वो मौके खुलके बरसने के,
अब गुबार के बादल तो है, पर बारिश की उम्मीद नहीं.
बेजुबां कई तकलीफे, कुछ तुमने सही, कुछ हमने सही.

कितनी बाते तो की तुमसे, वो सारी बाते बेमतलब थी,
बस दो बाते थी मतलब की, जो कायम दिल में कैद रही.
बेजुबां कई तकलीफे, कुछ तुमने सही, कुछ हमने सही.

कुछ लफ्ज मेरे होटो पे आकर कपकपाते रह जाते थे,
कशमकश थी एक इतनी सी, ये गलत नहीं या सही नहीं.
बेजुबां कई तकलीफे, कुछ तुमने सही, कुछ हमने सही.
Mere Aankho Me.....

कुछ बुँदे है बारिश की, कुछ नमी है मेरी आँखों में,
कितने बरसो की बरसाते थमी है मेरी आँखों में.


हकीकतो की सख्ती से वैसे तो वाकिफ है दिल,
झूटी उम्मीदों की धुल भी जमी है मेरी आँखों में.
कितने बरसो की बरसाते थमी है मेरी आँखों में.

तजुर्बो ने छोड़ा है ऐसा असर जहन-ओ-दिल पे,
मेरे ही ख्वाबो की सूरत सहमी है मेरी आँखों में.
कितने बरसो की बरसाते थमी है मेरी आँखों में.

जानेवाला लुट गया सब इश्क 'शफक' के दामन का,
अब खुदसे ही नफ़रत औ बेरहमी है मेरी आँखों में.
कितने बरसो की बरसाते थमी है मेरी आँखों में.

Friday 23 July 2010

इश्क हो गया शायद...

कुछ मिल गया या कुछ खो गया शायद,
धड़कने उलझी हुई है, इश्क हो गया शायद.


खुशबु से सराबोर है क्यों हर अदा मेरी,
तेरे खयालो का अब्र भिगो गया शायद.
धड़कने उलझी हुई है, इश्क हो गया शायद.

क्यों परेशां है नज़रे किसे ढूंड रही है
नज़रे बचाकर सामनेसे वो गया शायद.
धड़कने उलझी हुई है, इश्क हो गया शायद.

क्या बात है क्यों हिचकिया बंद हो गयी,
मुझे याद करते करते वो सो गया शायद.
धड़कने उलझी हुई है, इश्क हो गया शायद.

Tuesday 29 June 2010

चाँद टीका था खिड़की पे...

कल रात अचानक ऐसे लगा तेरा चेहरा दीखा था खिड़की पे,
गौर से देखा तो पाया की चाँद टीका था खिड़की पे.


पुरे फलक के तारे जोड़े कुछ अबरो की स्याही ली,
मैंने अपने हाथो तेरा नाम लिखा था खिड़की पे.
गौर से देखा तो पाया की चाँद टीका था खिड़की पे.

एक झलक तो देखा चाँद औ तेरी तस्वीर में डूब गया,
शब् भर उस महताब का तेवर बेहद तीखा था खिड़की पे.
गौर से देखा तो पाया की चाँद टीका था खिड़की पे.

वो शब् जब तुमने मुझसे आखरी रुखसत लेनी थी,
आधा अधुरा यही चाँद फीका फीका था खिड़की पे.
गौर से देखा तो पाया की चाँद टीका था खिड़की पे.

Thursday 24 June 2010

घर नहीं लगता.....

क्या पता क्यों अपना ये शहर नहीं लगता,
मेरा मकान मुझे ही घर नहीं लगता.


जबसे खो दिया है तेरी सहोबत को,
अब कुछ और खोने का डर नहीं लगता.
मेरा मकान मुझे ही घर नहीं लगता.

उसने कुछ फासला अब भी रखा है दरमियाँ,
वो हमराह होगा, हमसफ़र नहीं लगता.
मेरा मकान मुझे ही घर नहीं लगता.

दुवाये दिल से होगी तो खुदा तक जाएँगी,
तेरी दुवाओ में वो असर नहीं लगता.
मेरा मकान मुझे ही घर नहीं लगता.

फिजूल तलाशता है 'शफक' इश्क लोगो में,
इस राज का पता तो उम्रभर नहीं लगता.
मेरा मकान मुझे ही घर नहीं लगता.

Wednesday 23 June 2010

जलती रही आँखे


कतरा कतरा पिघलती रही आँखे,
कल रातभर जलती रही आँखे.


जानेवाले को ये मलाल न था.
साथ उसके कुछ दूर चलती रही आँखे.
कल रातभर जलती रही आँखे.

जिक्र पे उनके हर एक महफ़िल में,
लडखडाते रहे आंसू, संभलती रही आँखे.
कल रातभर जलती रही आँखे.

सहर होते ही चमकने लगी उम्मीदोसे,
शाम के साथ साथ ढलती रही आँखे.
कल रातभर जलती रही आँखे.

Saturday 12 June 2010

Ranjish.....

Ab har rishte ke har pahlu me ek ranjish lagati hai,
pyar mohabbat haq ki bate gahari sajish lagati hai

Meri tarakki ko uthate the jo jo hath duvao me,
meri barbadi unke jivan ki aakhri khwahish lagati hai.
pyar mohabbat haq ki bate gahari sajish lagati hai.

Kitni shiddat hoti thi jab wo muzko gale lagata tha,
ab un baho ke ghere me muzko bandish lagati hai.
pyar mohabbat haq ki bate gahari sajish lagati hai.

Continue.....

Thursday 3 June 2010

कोई इतने करीब हो...

मै हर तहज़ीब औ तकल्लुफ खो दूँ , कोई इतने करीब हो,
मै उससे लिपट जाऊ तो बस रो दूँ, कोई इतने करीब हो.

कितनी उम्मीदे है, कितने ही चेहरे है मेरे,
मुझे अपनाले मै जो हूँ , कोई इतने करीब हो.
मै उससे लिपट जाऊ तो बस रो दूँ, कोई इतने करीब हो.

सजदे में हाथ उठे और दिल में खुदगर्जी,
मै दुआ जो भी मांगू उसे वो दूँ, कोई इतने करीब हो.
मै उससे लिपट जाऊ तो बस रो दूँ, कोई इतने करीब हो.

Friday 28 May 2010

शोर बहोत है

शायद यहापर शोर बहोत है,
या लफ्ज मेरे कमज़ोर बहोत है.

जंग छिड़ी है दोनों में,
और नाज़ुक इश्क की डोर बहोत है.
या लफ्ज मेरे कमज़ोर बहोत है.

मेरे इश्क की हार मुकम्मल,
उसकी नफ़रत में जोर बहोत है.
या लफ्ज मेरे कमज़ोर बहोत है.

इश्क में हार का लुफ्त अलग है,
जीत को खेल और बहोत है.
या लफ्ज मेरे कमज़ोर बहोत है.

Wednesday 12 May 2010

कुछ देर खामोश रहो....

कुछ देर खामोश रहो,
बस देखती रहो मेरे चहरे को,
और पढो उन सारी दलीलों को,
उन सारी शिकायतों और तकलीफों को,
उस बहस पे भी गौर करो
जिन्हें लफ्ज पूरा नहीं कर पाए,
और शायद कभी कर भी न पाएंगे

मेरी हाथो की रेखाओ पे,
चेहरा ही रख दो,
कुछ तो खूबसूरती आ
जाये मेरे मुकद्दर में.
कुछ देर खामोश रहो,
बस देखती रहो मेरे चहरे को.

मेरे इन थके हुए कंधो पे अपना
सर रखदो सुकून से
कुछ तो रहत मिले
इन झुके कांधो को बोझ से.
कुछ देर खामोश रहो,
बस देखती रहो मेरे चहरे को.

इज़ाज़त दो अपनी आँखों को
कुछ कहने की,
जस्बातो को कुछ इशारे दो,
मेरी गज़लों में शायद वो
पुराणी रवानी ही लौट आये.
कुछ देर खामोश रहो,
बस देखती रहो मेरे चहरे को.

Monday 3 May 2010

क्षनिकाए

मेरे चहरे पे एक परत चढ़
गयी है उदासी की इन दीनो,
तुम आ जाओ तो एक तबस्सुम
ही खील जाये इस रुख पर,
कुछ तो दरारे पड़ेगी इन परतो पे,
कुछ तो कम होगा ये रुखापन .
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कुछ कुछ ज़ुर्रिया पड़
गयी है मेरी शक्ल पर,
कई दीन हुए तुने प्यार
से सहलाया नहीं मेरे चहरे को,
उम्र ही बुढा नहीं करती इंसान को
कुछ और भी सबब होते है.
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अल्फाज़ कमज़ोर हो गए है इन दीनो,
हजारो खर्च करता हु रोज़,
पर उसके सवालो के जवाब नहीं दे पाता,
कल मेरी खामोशी ने उसको सारे
जवाब दे दिए.
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Thursday 29 April 2010

बदल गए है ..........

हालात बदल गए है, खयालात बदल गए है,
सायल वही है फीर भी सवालात बादल गए है.

शहरों की तरक्की पे है नाज मुझे भी,
बस गम जरासा है क्यों देहात बदल गए है.
सायल वही है फीर भी सवालात बदल गए है.

वो दौर ही था और दोस्तों का, दोस्ती का,
उम्र के साथ साथ लेकीन जज्बात बदल गए है.
सायल वही है फीर भी सवालात बदल गए है.

जरूरतमंद है दोनों एक दुसरे के यक़ीनन,
बस दिल से दिल के जो थे तालुकात बदल गए है
सायल वही है फीर भी सवालात बदल गए है.

Monday 19 April 2010

Kuchh Adure Khayal........

कुछ ख्वाब अधूरे छोड़ आया, कुछ किस्से पुराने छोड़ आया,
उस कमरे की तन्हाई में कितने ज़माने छोड़ आया.

अब तो दिन का सूरज थक कर पैमाने में डूबा है,
वहा अधूरी नज्मो में लाखो मयखाने छोड़ आया.
उस कमरे की तन्हाई में कितने ज़माने छोड़ आया.

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आँख खुली और सिरहाने में तेरे अधूरे ख्वाब मिले,
सहर आइना देखा तो आँखों में महताब मिले.

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ये शाम यु ही फैली रहने दो, रात तलक मत जाने दो,
मध्हम सूरज की बाहों में धुंधला सा चाँद इतराने दो.

ढलती किरने सूरज की जो चाँद का चेहरा छू लेंगी,
सावले चाँद को पहले इश्क में थोडा तो शरमाने दो.
मध्हम सूरज की बाहों में धुंधला सा चाँद इतराने दो.

कई ज़माने से देखा है जलते बिलखते सूरज को,
आज के दिन बस चाँद की रुई से जख्म इसे सहलाने दो.
मध्हम सूरज की बाहों में धुंधला सा चाँद इतराने दो.

Kuchh khayal adhure rah jate hai, kuchh khushiya bhi aur kuchh lamhe bhi par wo pure jarur hote hai kisi din achanak jab shayad unke pura hone ki ummid bhi nahi rahti....

Saturday 17 April 2010

Raat Yu aankh khuli....

Raat yu aankh khuli, kuchh khwab gire, tut gaye,
Tumko bas chhu hi liya tha ki tum chhut gaye.


Kitne shiddat se banate ho rabt, tajjub hai,
aansu tumhare sath na ho paye to ruth gaye.
Tumko bas chhu hi liya tha ki tum chhut gaye.

Khuda paththar me rakha tha, ab bhi kameel hai,
Insaan kaanch ke the sab, gire to fut gaye.
Tumko bas chhu hi liya tha ki tum chhut gaye.

Bachaye rakhe the ahsas tere mushkil se 'shafak',
Gazalo ke mausam is bar wo bhi lut gaye.
Tumko bas chhu hi liya tha ki tum chhut gaye.
बेमानी होगी


आज फिर रात दिल की यही परेशानी होगी,
तुझे याद करू तो मुश्किल न करू तो बेमानी होगी.


छू ही लेना निगाहों से, ख्वाबो में चेहरा मेरा,
नींद में मुस्कुरा देना, मेहरबानी होगी
तुझे याद करू तो मुश्किल न करू तो बेमानी होगी.

मै लुटा भी दु अपनी हस्ती औ वजूद फिर भी,
तुझको बस ज्यादा से ज्यादा हैरानी होगी.
तुझे याद करू तो मुश्किल न करू तो बेमानी होगी.

धीरे धीरे ख़तम हो जाएगा ये रिश्ता यु ही,
किसी किताब में कोई बेरंग निशानी होगी.
तुझे याद करू तो मुश्किल न करू तो बेमानी होगी.

मसरूफ हो जाओगे ताज़ा तरीन ज़िन्दगी में,
पर जहन के कोने में एक याद पुरानी होगी
तुझे याद करू तो मुश्किल न करू तो बेमानी होगी.

Thursday 1 April 2010

Faisale Hue


कुछ बहस , कुछ गुफ्तगू , कुछ शिकवे -गिले हुए,
कल रात इश्क के कुछ अहम् फैसले हुए.


टूटे हुए रिश्ते की थी नुमाइश कुछ इस तरह
एक तस्वीर के टुकड़े और कुछ ख़त जले हुए .
कल रात इश्क के कुछ अहम् फैसले हुए.

यादे समेट रखी थी जिन तौफो में कभी तो ,
कुछ कांच के टुकड़े भी वहा थे फैले हुए .
कल रात इश्क के कुछ अहम् फैसले हुए.

बिखरे हुए कमरे में सन्नाटो की गूंज थी,
और उसकी सिसकियो के थे कुछ सुर मिले हुए.
कल रात इश्क के कुछ अहम् फैसले हुए.

उस रिश्ते को न जिंदा रखा न ही मारा उन्होंने,
कितने थे जख्म आधे खुले आधे सिले हुए.
कल रात इश्क के कुछ अहम् फैसले हुए.

मेरा हर तौफा तेरे पास तो मुरझा गया होगा,
तेरे वो कागज़ी फुल है पर अब तक खिले हुए.
कल रात इश्क के कुछ अहम् फैसले हुए.

Monday 22 March 2010

Mai Khwab Hu .....

Mai khwab hu teri rato ka, subah hogi aur mit jaunga,
Aur ye bhi wada nahi karta fir kab laut kar aaunga.


Mai khwab hu bas achcha hoga, aankho me hi rahne de muzko
Kyu palko me chhupake rakha hai, ashko me hi bahane de muzko.
Ye mashwara hai Meri khatir apna sukun barbad na kar,
Aitbar nahi mera koi mai kab tutkar bikhar jaunga.
Aur ye bhi wada nahi karta fir kab laut kar aaunga.

Mai mahtaab hu teri khatir, teri tanhai kuchh kam karta hu,
Khamosh andheri rato me shayad kuchh roshani bharata hu.
Par tuzko bhi hai ilm, sahar jo sabse badi haqikat hai,
Raat khilunga band aaknho me khulte se murzaunga.
Mai khwab hu teri rato ka, subah hogi aur mit jaunga.

Kucchh khwab raatbhar chubhate rahe,Teri aankhe aksar ye kahati hai
Itna aziz kyukar ho khwab, kyu itna dard wo sahti hai.
Mai waqt tha tera jo shayad aaya tha aur ab beet gaya,
Na wo lamhe kaid tu kar payi, na mai khudko dohraunga
Aur ye bhi wada nahi karta fir kab laut kar aaunga.

Khwabo ke sahare jine ki nakam si koshish chhod bhi de,
Jo judaa nahi tha vakai me, us rishte ki dor ko tod bhi de,
Mai haar chuka sab kuchh apna tu fir bhi jeet nahi payi
Ab bas jaan bachi hai deneko aur kuchh bhi na ab de paunga.
Aur ye bhi wada nahi karta fir kab laut kar aaunga.

Thursday 11 March 2010

Zamane Yaad Aaye...

Ek tuze bas yad kiya to kitne zamane yaad aaye,
Naya naya ahsas hua jab din wo purane yaad aaye.


Kitni bate badal gayi hai par mai shayad wahi raha,
Pahale teri yaad aayi aur fir maykhane yaad aaye.
Naya naya ahsas hua jab din wo purane yaad aaye.

Hairani hoti hai aksar muzko insani fitrat se,
Mahfil ki us bhid se muzko kyu virane yaad aaye?
Naya naya ahsas hua jab din wo purane yaad aaye.

Sahar se pahale jab chand falak se rukhsat lenewala tha,
Meri zid aur uspar tere shokh bahane yaad aaye.
Naya naya ahsas hua jab din wo purane yaad aaye.

Aaj achanak raat andhere ek nazm jahan me bunane lagi,
Bazm-e-dosto ki wah wahi, kuchh khali paimane yaad aaye.
Naya naya ahsas hua jab din wo purane yaad aaye.

Wo darakht ab tut gaya hai, do hisso me bat bhi gaya,
Fir bhi usko dekhate muzko do deewane yaad aaye.
Naya naya ahsas hua jab din wo purane yaad aaye.

Saturday 6 March 2010

Aankho Ke Samne.....

Aankho ke samne jab bhi teri tasveer padati hai.
Yaade teri badi der tak fir muzase ladati hai.

Wo is kadar bachaati hai muze duniya ki nazar se,
Gazale bhi meri aksar akele me padhti hai.
Yaade teri badi der tak fir muzase ladati hai.

Mai is kadar shamil hu shayad uski duvao me,
Wo muskura bhi de to meri umr badhati hai.
Yaade teri badi der tak fir muzase ladati hai.

Meri taqdir me kuchh bhi nahi ab uske alawa,
Wo aaye to sawar jaye wo jaye to bigadti hai.
Yaade teri badi der tak fir muzase ladati hai.

Kin lafjo se samzaye ‘Shafaq’ falsafa marasim ka,
Majburan ruh bhi ek din jism se bichhadati hai.
Yaade teri badi der tak fir muzase ladati hai.


Falsafa : Philosophy, Marasim : Rishta, Relation, Ruh : Aatma, Soul.

Wednesday 3 March 2010

Tera Chale Jana...


Har mulaqat ke baad tera chale jana, achcha nahi lagata,
Jate hue muzase wo tera hath chhudana, achcha nahi lagata.

Haal-e-dil mai jab tuzase bayan karata hoon,
Tera har baat pe shokh muskurana, achcha nahi lagata.
Jate hue muzase wo tera hath chhudana, achcha nahi lagata.

Tamanna meri bhi hai mai dekhu tuze sharmate hue,
Hathose yu chand chhupana, achcha nahi lagata.
Jate hue muzase wo tera hath chhudana, achcha nahi lagata.

Ishq nasha hai, bahakana jaruri hai bahot,
Har kadam pe sambal sambhal jana, achcha nahi lagata.
Jate hue muzase wo tera hath chhudana, achcha nahi lagata.

Nazar mile to dilo ki guftgu bhi ho 'shafaq',
Nazar mile na mile ke zukana, achcha nahi lagata.
Jate hue muzase wo tera hath chhudana, achcha nahi lagata.

Sunday 28 February 2010

Teri Yado Ki...

Tere yado ki saba raatbhar chalati rahi,
Dhadkane tez ho hokar ke sambhalati rahi.

Chandani raat thi, roshan tha chand bhi lekin,
Puri shab teri hi teri kami khalati rahi.
Dhadkane tez ho hokar ke sambhalati rahi.

Der tak jalati rahi aankhe,ashq bahate rahe,
Shamma bhi sath sath pighalati rahi.
Dhadkane tez ho hokar ke sambhalati rahi.

Mere manind chand bhi jaga tha 'shafaq',
Raat bebas bhi karavate badalati rahi.
Dhadkane tez ho hokar ke sambhalati rahi.

Wednesday 24 February 2010

Kitani Bate Hai....


Zuthi Muskan jo chehare pe saja rakhi hai,
kitani bate hai jo bevaja rakhi hai.

Unki shokhiyo ko dekhu ya ishq ko samzu,
Na bhi kahate hai aur chehare pe raja rakhi hai.
kitani bate hai jo bevaja rakhi hai.

Duniyadari sikh li hai, ab napak hu mai,
Teri tasveer magar aaj bhi pakija rakhi hai.
kitani bate hai jo bevaja rakhi hai.

Mai Ye sawal rozana karata hu apne khuda se,
Dilkash libas me kyu ishq ki saja rakhi hai.
kitani bate hai jo bevaja rakhi hai.

Koi dekhe na haqikat me kya hai tu 'Shafaq',
Darvaja band aur battiya bujha rakhi hai.
kitani bate hai jo bevaja rakhi hai.

Sunday 31 January 2010

Sadiyo se nibha rahe hai kuchh zuthe rishte,
Upar se mukkamal bhitar se tute rishte.

Jab kabhi bhi rishto me takrar hui, pech lagi,
Padosiyo ne bade maje se lute rishte.
Upar se mukkamal bhitar se tute rishte.

Jid jo puri hui to hasane lage, hasane lage,
Nahi to der tak bachchose ruthe rishte.
Upar se mukkamal bhitar se tute rishte.

Ub jane pe feka to sahi par ye na dekha tumne,
Kaanch ke jaise chhanse kaise fute rishte.
Upar se mukkamal bhitar se tute rishte.

Tuesday 12 January 2010

Shikan

Mere chehare pe ye kaisi shikan aati hai.
Kyu aaina dekhkar aankhe meri zuk jati hai.


Sune kamare ke sannato ki gunj me aksar
Ek purani aawaz visal-e-sham ko bulati hai.
Kyu aaina dekhkar aankhe meri zuk jati hai.

Bahot jaruri hai din ke bad raat ka hona,
din rulata hai bahot to raat samzati hai.
Kyu aaina dekhkar aankhe meri zuk jati hai.

Mere kamare me char su hai udasi hi udasi,
Bas teri tasveer hai jo aaj bhi muskurati hai.
Kyu aaina dekhkar aankhe meri zuk jati hai.

Saturday 9 January 2010

Kitni Hui Bate

Kitni hui bate magar kuchh bhi nahi kah pay mai,
maujo ke sath hokar bhi kabhi kyu nahi bah paya mai.

Na uski ummido ki surat ko haqikat me badala gaya,
Aur na apne aap me khud hi kabhi rah paya mai.
maujo ke sath hokar bhi kabhi kyu nahi bah paya mai.

Tuti hue dil ki marammat ko to waqt na mila,
Aur na khandhar ke jaise befikr dah paya mai.
maujo ke sath hokar bhi kabhi kyu nahi bah paya mai.

Maine hi to kaha tha kabhi, teri har ada hai sir aankho par,
Aur teri bevafai jarasi, kuchh der bhi na sah paya mai.
maujo ke sath hokar bhi kabhi kyu nahi bah paya mai.