Tuesday 27 December 2022

जो हो रहा है

जो हो चुका, होने को है, जो हो रहा है।
मेरा ज़हन क्यों बोझ इतना ढो रहा है।

हर चीज की मोहलत खतम होती ही है,
वो खो चुका, खो दूंगा ये, ये खो रहा है।
मेरा ज़हन क्यों बोझ इतना ढो रहा है।

वो जो बराबर था शरीक सबके गमों में,
देखो वही खुदसे लिपट के रो रहा है।
मेरा ज़हन क्यों बोझ इतना ढो रहा है।

मुमकिन नहीं उसको जगा पाना 'शफ़क',
जो बस दिखावे के लिए ही सो रहा है।
मेरा ज़हन क्यों बोझ इतना ढो रहा है।

Wednesday 7 December 2022

मैं

तुम्हारी ख्वाहिश-ओ-दिल-ओ-जान में हूं मैं।
ये कैसी खुशफहमियो गुमान में हूं मैं।

तुम शहर में पहचान छुपाते हो भला क्यों,
अब तक भी तुम्हारी क्या पहचान में हूं मैं।
ये कैसी खुशफहमियो गुमान में हूं मैं।

मेरी खताएं, गलती-गुनाह याद है तुम्हे,
किसी बहाने सही हां तुम्हारे ध्यान में हूं मैं।
ये कैसी खुशफहमियो गुमान में हूं मैं।

बेटे को जो पढ़ते हुए देखा तो ये लगा,
तयारी में लगा है वो, इम्तेहान में हूं मैं।
ये कैसी खुशफहमियो गुमान में हूं मैं।

कुछ यूं है गज़ल अपने मोहब्बत के हश्र की,
मिसरो में तुम ही तुम हो, उनवान में हूं मैं।
ये कैसी खुशफहमियो गुमान में हूं मैं।