Saturday 7 April 2012

तुम ये आँखों से

तुम ये आँखों से क्या क्या बयाँ करते हो,
हामी भरते हो कभी, तो कभी मुकरते हो.


बड़ी शिद्दत से झांकते हो मेरी आँखों में,
नज़र मिलालू अगर मै तो भला डरते हो.
हामी भरते हो कभी, तो कभी मुकरते हो.

आईने रूठ जायेंगे अहतियात करो,
मेरी आँखों में खुदको देखकर सवरते हो
हामी भरते हो कभी, तो कभी मुकरते हो.

कभी आज़ाद करो खुदको भी जुल्फों की तरह,
क्यों यु सहमे हुए बाँहों में बिखरते हो.
हामी भरते हो कभी, तो कभी मुकरते हो.
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आँखों में छुपाकर लायी थी तुम, इश्क जो मुझको देना था,
बस नज़रे उठाकर देखा मुझको , एक पल में सारा लुटा दिया.

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Monday 2 April 2012

कशमकश...

बड़ी देर से साहिल पे कशमकश में ठहरा हु,
समंदर मुझसे गहरा या इससे भी मै गहरा हु.

तजुर्बे कीमती होते है, मेरा सब कुछ है अब गिरवी
रूह मुझमे थी बचपन तक, मगर अब सिर्फ चेहरा हु.
समंदर मुझसे गहरा या इससे भी मै गहरा हु.

इसपे हैरां रहू, रोऊ या अनदेखा करू?
जिस माथे की रौनक था, उसी माथे का सहरा हु.
समंदर मुझसे गहरा या इससे भी मै गहरा हु.