Saturday 16 October 2010

कुछ शिद्दत भी हो मिलने की


कुछ शिद्दत भी हो मिलने की, और मुफीद हालात भी हो,
नजरो की कुछ शर्म घटे तो दिल से दिल की बात भी हो.

लफ्जो की जरुरत कतई नहीं है, लुत्फ़ भी कम हो जायेगा.
शर्म-ओ-हया हो, डर हो थोडा, कुछ ऐसे तालुकात भी हो.
नजरो की कुछ शर्म घटे तो दिल से दिल की बात भी हो.

बंदिशे तू तोड़ जरा, कुछ इश्क को भी इतराने दे,
उलझे उलझे दिन गुजरे कुछ बहकी बहकी रात भी हो.
नजरो की कुछ शर्म घटे तो दिल से दिल की बात भी हो.

1 comment:

Friend... said...

Aapki gazalke ek ek shabd bahut asanise sab kuch samjha deti hai.

Nice Gazal ya fir yun kaho Andaz!