Thursday 22 January 2015

ज़िंदगी जारी रही

जख्म उबलते रहे, गमख्वारी रही,
सांस चलती रही, ज़िंदगी जारी रही।

दिल हल्का हुआ करता था तेरी सोबत में,
धड़कने रातभर सीने में कल भारी रही।
 सांस चलती रही, ज़िंदगी जारी रही।

तू था तो तेरी अहमियत न थी मुझको ,
तेरे जाने के बाद तेरी खुमारी रही।
सास चलती रही,ज़िंदगी जारी रही।

ये कैसा खेल था अंजाम क्या हुआ इसका?
मै ना जीत सका ताउम्र तू भी हारी रही।
सांस चलती रही, ज़िंदगी जारी रही।

Monday 12 January 2015

दिल डरा सा है...

उसकी चुप्पी में मशवरा सा है।
कुछ तो है दिल डरा सा है।

कई उम्मीदे दफ़न है इसमें,
मेरा दिल मक़बरा सा है।
कुछ तो है दिल डरा सा है।


ज़िंदगी सहरा हुयी है फिर भी,
लहजा अब भी हरा भरा सा है।
कुछ तो है दिल डरा सा है।

फासले इतने बढ़ गए कैसे?
फर्क दोनों में बस ज़रा सा है।
कुछ तो है दिल डरा सा है।