Sunday 26 September 2010

इश्क बेघर है


कैसे हालात है, कैसा मंजर है,
हममे दिवार है और इश्क बेघर है.


वो बहोत देर से चुप है, बात गहरी होगी,
हम जानते है ख़ामोशी समंदर है.
हममे दिवार है और इश्क बेघर है.

मेरी रुखसत पे खामोश था वो कल,लेकिन,
आज रोया है बहोत, हालत अब कुछ बेहतर है.
हममे दिवार है और इश्क बेघर है.

जो खोने का डर था वो तो लुट गया,
अब क्यों सहमे है, अब क्या डर है.
हममे दिवार है और इश्क बेघर है.

Thursday 16 September 2010

यु तो कहने को

यु तो कहने को साथ चलते रहे,
वक़्त के साथ सब बदलते रहे.


इश्क को जूनून औ नशा कहनेवाले
क्या पता कैसे खुद संभलते रहे.
वक़्त के साथ सब बदलते रहे.

दिल तो टुटा भी, बिखर भी तो गया,
ख्वाब टुकडो में भी मगर पलते रहे.
वक़्त के साथ सब बदलते रहे.

तेरी मासूमियत भी खो गयी है कही,
मेरे अरमान भी सब जलते रहे.
वक़्त के साथ सब बदलते रहे.

मोम के थे क्या वो सभी वादे,
कतरा कतरा जो पिघलते रहे.
वक़्त के साथ सब बदलते रहे.

Wednesday 1 September 2010

कभी कभी.......

रास्ते पे देखा, मुस्कुराया,दिखा दिया हाथ कभी कभी.
इसको भी कहा है हमने मुलाकात कभी कभी.


कितने डरे हुए थे लफ्ज, कपकपा रहे थे होटो पे,
आँखे बेबाक हो बताती है पर जज्बात कभी कभी.
इसको भी कहा है हमने मुलाकात कभी कभी.

सुना है सीने से लगाकर रखता है वो मेरी गज़लों को,
कागज की कीमत बढ़ा देते है खयालात कभी कभी.
इसको भी कहा है हमने मुलाकात कभी कभी.

रात को चाँद देखना हमे भी है बहोत अजीज,
पर अच्छी लगती है पूरी अंधेरी रात कभी कभी.
इसको भी कहा है हमने मुलाकात कभी कभी.

उसके करीब था बहोत और बहोत फासले भी थे,
ऐसे मंज़र भी हुए है 'शफक' के साथ कभी कभी
इसको भी कहा है हमने मुलाकात कभी कभी.
दो लफ्ज...

दिल की धड़कन थी तेज बहोत, कैसे थे क्या हालात कहे,
बस दो लफ्जो की सूरत में उसने कितने जज्बात कहे.

झुकी हुई नज़रो की हया, और कुछ हैरानी लफ्जो की,
दोहराते हुए उस मंजर को कैसी बीती क्या रात कहे.
बस दो लफ्जो की सूरत में उसने कितने जज्बात कहे.

उसने संभाले रखे थे कुछ एहसास सदियों से सीने में,
कुछ तासुर ने उसके बोल दिए, कुछ आँखों की बरसात कहे.
बस दो लफ्जो की सूरत में उसने कितने जज्बात कहे.

वो कितना छुपाती है मुझसे, कभी हर्फो को कभी चेहरे को,
अब उसकी तबस्सुम मुझसे, उसके दिल की हर बात कहे.
बस दो लफ्जो की सूरत में उसने कितने जज्बात कहे.