Saturday 16 July 2016

पत्थर कर लू

बजाय इसके की रो रो के बद्तर कर लू।
आँखे खुश्क रखु, दिल को पत्थर कर लू।

तेरी सोच औ समझ पे तो मेरा जोर नहीं,
मुनासिब है मेरा लहजा ही बेहतर कर लू।
आँखे खुश्क रखु, दिल को पत्थर कर लू।

रुखा चेहरा, सीने की जलन, खुश्क आँखे,
तेरी बाहों में आउ, खुदको तरबतर कर लू।
आँखे खुश्क रखु, दिल को पत्थर कर लू।

तू कागज़ पे रख दे अपना इश्क औ जुनूं,
मै तेरे लिखे लफ्जो को मुकद्दर कर लू।
आँखे खुश्क रखु, दिल को पत्थर कर लू।

तुझिसे ज़िन्दगी है तू ही सबब मौत का भी,
मुमकीन है अपनी साँसों को जहर कर लू।
आँखे खुश्क रखु, दिल को पत्थर कर लू।

Tuesday 12 July 2016

जिक्र

जिक्र मेरी किसी ग़ज़ल का करना,
फिर आँखों का छलका करना।

आज से जो नाउम्मीद हो जाए,
फिर कोई वादा कल का करना।
जिक्र मेरी किसी ग़ज़ल का करना।

उम्र लगी है दाव पे तो फिर
क्या हिसाब पल पल का करना।
जिक्र मेरी किसी ग़ज़ल का करना।

तकिये को सीने पे रखके,
दिल के बोझ को हल्का करना।
जिक्र मेरी किसी ग़ज़ल का करना।

Sunday 3 July 2016

जब तुम

जब तुम मेरी बाहों का तकिया बनाकर सोती हो,
मै देर तक ताकता रहता हु तुम्हे,
कोई तासुर नहीं होता तुम्हारे चेहरे पर,
न ही कोई शिकन होती है माथे पर,
एक बेफिक्री फैली हुई होती है माथे से लबो तक,
एक मासूमियत की गुलाबी परत आ जाती है चेहरे पे,
बड़ा दिल करता है की समेट लू हाथो से उसे,
और अपनी हथेली पे मल लू,
जब भी तुम उदास लगो या परेशां रहो,
तुम्हारे चेहरे पे लगा दू ये रंग ओ अदा,
तुम्हे ताज्जुब होगा पर हकीकत है ये भी,
की उस वक़्त मेरे भी चेहरे पे कोई तासुर नहीं होते,
जो सुकूं तुम्हे मिलता है बंद आँखों में उस वक़्त,
उसी सुकूं को मै भी जीता हु खुली आँखों से.

मै सोता हु तुम्हारी आँखों से,
तुम मेरी आँखों से जागती हो।

तो दिल से उतर जाता

तेरा नज़रिया भी गर मेरी नज़र जाता।
मेरा रवैया भी, मुमकिन था सुधर जाता।

मेरी ख़ामोशी ने मुझे अजीज़ बनाए रखा,
मै बोल देता, तो दिल से उतर जाता।
मेरा रवैया भी, मुमकिन था सुधर जाता।

मै गुज़रा हु ऐसी भी बेबसी से कभी,
गर पगड़ी बचाना चाहता तो सर जाता।
मेरा रवैया भी, मुमकिन था सुधर जाता।

हम बिछड़ गए, ये गलतफहमी है जमाने की,
ये हकीकत में गर होता तो मर जाता।
मेरा रवैया भी, मुमकिन था सुधर जाता।