Monday 30 November 2015

रात कुछ और जले..

रात कुछ और जले, पिघल जाए।
ख्वाब टूटे, नींद में ख़लल जाए।

वो नज़र चुराकर यु निकला पहलू से,
वक़्त से बचकर जैसे कोई पल जाए।
ख्वाब टूटे, नींद में ख़लल जाए।

जितना जीना था जलना था, जल चूका हु,
सूरज से कहदो की अब तो ढल जाए।
ख्वाब टूटे, नींद में ख़लल जाए।

इतनी शिद्दत से मौत को गले लगाया है,
ज़िन्दगी देख ले अगर तो जल जाए।
ख्वाब टूटे, नींद में ख़लल जाए।

संभल के गुफ्तगू करना, हबिबो से रकीबो से,
बातो बातो में मेरी बात न निकल जाए।
ख्वाब टूटे, नींद में ख़लल जाए।

पहले वो, फिर उम्मीद अब यादे उनकी,
रेत हाथो से जैसे फिसल जाए।
ख्वाब टूटे, नींद में ख़लल जाए।

कभी जो टूटकर रोने लगो तो मुमकीन है,
सबके रहते भी तुम्हे मेरी कमी खल जाए।
ख्वाब टूटे, नींद में ख़लल जाए।

ये तो तौहीन है 'शफ़क़' मयखाने की,
नशे में भी उसके जिक्र पे संभल जाए।
ख्वाब टूटे, नींद में ख़लल जाए।

Tuesday 24 November 2015

किधर जाऊ

किसकी जानिब देखू, किधर जाऊ,
ज़िंदा रहने के लिए सोचता हु मर जाऊ।

असर ताउम्र रहेगा मेरे होने, ना होने का
मै वो दुआ नहीं जो बेअसर जाऊ।
ज़िंदा रहने के लिए सोचता हु मर जाऊ।

माँ तू ही कहती थी बड़ा मासूम दिल हु मै,
अब तू ही कहती की मै सुधर जाऊ।
ज़िंदा रहने के लिए सोचता हु मर जाऊ।

हालात खिंच के ले जाते है मयखानो में,
मै तो चाहता हु हर शाम अपने घर जाऊ।
ज़िंदा रहने के लिए सोचता हु मर जाऊ।

खुदा संभाल मेरे ख्वाब,उम्मीदे औ हसरते,
आखरी सफ़र में कम से कम बेफ़िकर जाऊ।
ज़िंदा रहने के लिए सोचता हु मर जाऊ।

Monday 2 November 2015

कैफियत

बेफिक्री, आवारगी, कैफियत कितनी,
मिलती है मुझसे तेरी तबियत कितनी।

चाँद ने बस एक रात की छुट्टी लेकर,
तारो की बढ़ा दी है अहमियत कितनी।
मिलती है मुझसे तेरी तबियत कितनी।

इश्क औ हालात, मुकद्दर औ मरासिम,
ज़िन्दगी मेरी है पर मेरी मिल्कियत कितनी?
मिलती है मुझसे तेरी तबियत कितनी।

उसने सोचा ही नहीं राह ए मोहब्बत में 'शफ़क़',
मुश्किलें कितनी है सहूलियत कितनी।
मिलती है मुझसे तेरी तबियत कितनी।

वज़ारत

ये सितम ये अंदाज़ ए हिक़ारत नहीं होती।
हम गुलाम न होते, ये वज़ारत नहीं होती।

कयी पत्थर दफ़्न हुए है बुनियाद की सूरत,
बुलंद ऐसे ही कोई ईमारत नहीं होती।
हम गुलाम न होते, ये वज़ारत नहीं होती।

उन्ही में होती है साजिशे हजारो,
वो आँखे जिनमे कोई शरारत नहीं होती।
हम गुलाम न होते, ये वज़ारत नहीं होती।

अनकही बाते

जहन में रखी है कुछ अनकही बाते,
बड़ी जरूरी है बयां होना वही बाते।

गुफ्तगू है फिर भी ये ग़लतफ़हमिया,
क्या होता जो होती ही नहीं बाते।
बड़ी जरूरी है बयां होना वही बाते।

ये लहज़ा, नज़र औ सलीके का असर है,
बुरी लगती है भला सिर्फ कही बाते?
बड़ी जरूरी है बयां होना वही बाते।

ये हूनर मुश्कील है सच्चाइ पसंद लोगो में,
सही वक़्त पे करना अक्सर सही बाते।
बड़ी जरूरी है बयां होना वही बाते।