Friday 28 December 2018

कुछ कर जाए।

इससे पहले की मर जाए।
एक काम करे, कुछ कर जाए।

इतनी आदत है अंधेरो की,
रोशनी से ही डर जाए।
एक काम करे, कुछ कर जाए।

ये हो सकता है रोने से,
ख्वाब फिसल के गीर जाए।
एक काम करे, कुछ कर जाए।

दिल का बंद जो टूटा तो,
आंखों की झील न भर जाए।
एक काम करे, कुछ कर जाए।

छोड़के शहरी मकानों को,
चल लौटे गांव के घर जाए।
एक काम करे, कुछ कर जाए।

हर राह तुझी को जाती है
अब तू ही बता किधर जाए।
एक काम करे, कुछ कर जाए।

जिसको जाना था चले गए,
जाने कब उनकी फिकर जाए।
एक काम करे, कुछ कर जाए।

साहिल ने कुछ तो कहा होगा,
क्यो लौटके हर एक लहर जाए।
एक काम करे, कुछ कर जाए।

मुझे डर है ये दौर ए उल्फत,
तेरे आने तक ना गुज़र जाए।
एक काम करे, कुछ कर जाए।



Sunday 2 December 2018

सोचा बहोत

सोचा बहोत, किया कुछ भी नही।
अलावा ख्वाब के मियां कुछ भी नही।

मौत ने ज़िन्दगी छीन ली आखिर,
और बदले में दिया कुछ भी नही।
अलावा ख्वाब के मियां कुछ भी नही।

मैं कुछ भी नही हु दुनिया के लिए,
मेरी नज़र में दुनिया कुछ भी नही।
अलावा ख्वाब के मियां कुछ भी नही।

मैं उसके रूबरू जाता ही नही,
सामने सूरज के दीया कुछ भी नही?
अलावा ख्वाब के मियां कुछ भी नही।

उसने कुछ ऐसे ज़िन्दगी बीता दी,
मयखाने आकर पीया कुछ भी नही।
अलावा ख्वाब के मियां कुछ भी नही।

Wednesday 17 October 2018

कहने नही देती।

बहोत कहना है, मजबूरिया कहने नही देती।
नदी खुदको यू समंदर तक बहने नही देती।

ज़िन्दगी शैतान बहोत है मेरे बेटी की तरह ही,
वो कोई चीज़ अपनी जगह रहने नही देती।
नदी खुदको यूं समंदर तक बहने नही देती।

उसके अपने ही कई ग़म है लेकिन हा मेरी माँ,
मुझे अब तक मेरे भी दर्द कुछ सहने नही देती।
नदी खुदको यूं समंदर तक बहने नही देती।

ऊंचा हुआ हूं बैठके वालिद के कांधो पे,
मेरी बुनियाद इमारत मेरी ढहने नही देती।
नदी खुदको यूं समंदर तक बहने नही देती।

तजुर्बा ए ज़िन्दगी है, ये सोने की चूड़ियां,
माँ बेटी को बस श्रृंगार के गहने नही देती।
नदी खुदको यूं समंदर तक बहने नही देती।

Tuesday 16 October 2018

बेवजह

गुनाहों की जैसे सज़ा जी रहे है।
क्यों खामखा बेवजह जी रहे है।

हम ज़िंदा है, इतना ही काफ़ी है जाना,
ये ना पूछो की कैसे, कहां जी रहे है।
क्यों खामखा बेवजह जी रहे है।

कई रोज़ से रूह बीमार है और,
जिस्मानी, बरा ए दवा जी रहे है।
क्यों खामखा बेवजह जी रहे है।

उम्र वैसे तो कबकी खतम हो गयी थी,
इन दिनों तो तुम्हारी दुआ जी रहे है।
क्यों खामखा बेवजह जी रहे है।

ज़िन्दगी जैसे माशूक़ हो बेवफा सी,
शफ़क इन दिनों जीस तरह जी रहे है।
क्यों खामखा बेवजह जी रहे है।

ज़िन्दगी से बड़ा इश्क़ कोई नही है,
तुम ज़िंदा वहां, हम यहां जी रहे है।
क्यों खामखा बेवजह जी रहे है।

वो लम्हे, वो रिश्ते फ़ना हो चुके है,
क्यो उन्हींको भला बारहा जी रहे है।
क्यों खामखा बेवजह जी रहे है।

Sunday 14 October 2018

प्रशंसा मिलती है।

बचपन औ जवानी क्षण क्षण जब कर्तव्य आग में जलती है।
तब कही वृद्धावस्था को दुनिया में प्रशंसा मिलती है।


पथ्थर पथ्थर बट जाते है,
पर्वत सारे कट जाते है,
जब शांत सरल अल्हड नादिया 
अपनी रफ़्तार से चलती है।
तब कही वृद्धावस्था को दुनिया में प्रशंसा मिलती है।

एक पीढ़ी की निवृत्ती पर,
दूजी को मिलता है अवसर,
जब नवल अरुणोदय के लिए,
एक शाम पुरानी ढलती है।
तब कही वृद्धावस्था को दुनिया में प्रशंसा मिलती है।

प्रकृति सी प्रकृति हो,
परिवर्तन को स्वीकृति हो,
जो धूप सुखाये नदियो को,
उसी धूप में हीम पिघलती है।
तब कही वृद्धावस्था को दुनिया में प्रशंसा मिलती है।

कई मौसम पीछे जाते है,
हम अविरत सींचे जाते है,
कर्म के पौधों की कलियां,
खिलते खिलते तब खिलती है।
तब कही वृद्धावस्था को दुनिया में प्रशंसा मिलती है।

Friday 12 October 2018

Friday 3 August 2018

बहोत मुश्किल है

बहोत मुश्किल है मेरी जां अब ये रिश्ता निभाना भी।
नहीं आंसा नहीं है पर तुझे यु छोड़ जाना भी।

कश्मकश है अजब सी ये न खुश ही हु न ग़म ही है,
नया हासिल हुआ है कुछ तो खोया कुछ पुराना भी।
नहीं आंसा नहीं है पर तुझे यु छोड़ जाना भी।

ज़िन्दगी ढाल पे हो तब, हुनर ये भी जरूरी है,
बहोत रफ़्तार में खुदको मुमकीन हो रुकाना भी।
नहीं आंसा नहीं है पर तुझे यु छोड़ जाना भी।

चलो छोडो की ये फुरकत तकाज़ा है की मजबूरी,
सबब जो की हकीकत है, लगता है बहाना भी।
नहीं आंसा नहीं है पर तुझे यु छोड़ जाना भी।

वक़्त ए रुखसत छुड़ाए हाथ हम ऐसे सलीखे से,
की फिर मील जाए तो आसान हो नज़रे मिलाना भी।
नहीं आंसा नहीं है पर तुझे यु छोड़ जाना भी।

Saturday 14 July 2018

मेरा खामोश रहना भी।

तुम्हे नाराज कर देगा मेरा खुलकर के कहना भी।
तुम्हे पर नापसंद भी है मेरा खामोश रहना भी।

मैं गोया पैरहन सा हु हबीबो और अज़ीज़ों का,
हज़ारो दाग भी देखे, जरुरत थी तो पहना भी।
तुम्हे पर नापसंद भी है मेरा खामोश रहना भी।

कई किरदार मेरे है उसकी अदनी कहानी में,
मैं ही आंसू, मैं तबस्सुम, उदासी हु मैं गहना भी।
तुम्हे पर नापसंद भी है मेरा खामोश रहना भी।

मुमकीन है ये ज़ब्त ए आह यु सैलाब बन जाए,
जरुरी है इन आँखों का कभी बेख़ौफ़ बहना भी।
तुम्हे पर नापसंद भी है मेरा खामोश रहना भी।

वक़्त हर चीज़ के होने, न होने का मुकम्मल है,
तक़दीर ए इमारत में, बुलंदी है, तो ढहना भी।
तुम्हे पर नापसंद भी है मेरा खामोश रहना भी।

Thursday 12 July 2018

मुझे कुछ और होना था

कभी खामोश होता था, अब तो शोर हो गया हूं।
मुझे कुछ और होना था, मगर कुछ और हो गया हूं।

वक़्त के साथ हुस्न ए चाँद का घटना भी है लाज़िम,
किसी की ज़िन्दगी था तब उसीका दौर हो गया हूं।
मुझे कुछ और होना था, मगर कुछ और हो गया हूं।

ना जाने कौन कब किस और खींचे, तोड़ ही डाले,
रिश्तो के दरमियां की मैं नाज़ुक डोर हो गया हूं।
मुझे कुछ और होना था, मगर कुछ और हो गया हूं।

कदम पीछे लिए है दो, ताब औ ताक़त इज़ाफ़ी को,
ग़लतफ़हमी में मत रहना की कमज़ोर हो गया हूं।
मुझे कुछ और होना था, मगर कुछ और हो गया हूं।

Thursday 29 March 2018

किरदार

मेरा रहबर, मेरा हमदम, गुनाहगार भी वो है।
मेरी अदनी कहानी का अहम् किरदार भी वो है।

वो जैसे दायरा है और मैं गोया एक दरिया हु,
मेरे इस पार भी वो है, मेरे उस पार भी वो है।
मेरी अदनी कहानी का अहम् किरदार भी वो है।

राज़ ए दिल भला कैसे उसकी आँखों में पढ़ पाता,
वही ज़ेवर, अलमीरा, पहरेदार भी वो है।
मेरी अदनी कहानी का अहम् किरदार भी वो है।

जैसे शमशीर कोई म्यान में सोने के रखी हो,
बहोत मासूम दिखता है, बड़ा हुशियार भी वो है।
मेरी अदनी कहानी का अहम् किरदार भी वो है।

दौर

शब् ए आफताब बेवक़्त ढल रहा है।
उजालो का दौर बुरा चल रहा है।

नुमाईश न कर आरज़ी शोहरतो की,
जो तेरा आज है, वो मेरा कल रहा है।
उजालो का दौर बुरा चल रहा है।

वो जिसकी आँखों में है समंदर,
उसीका सीना भी जल रहा है।
उजालो का दौर बुरा चल रहा है।

है झूटी कहानी माना ये, फिर भी,
बच्चे का दिल तो बहल रहा है।
उजालो का दौर बुरा चल रहा है।

दो पैरो के जैसी है ये साझेदारी,
एक थक गया, तो एक चल रहा है।
उजालो का दौर बुरा चल रहा है।