Wednesday 13 February 2013

Kuchh Sher....


Jab tere shahar ki sarhad se gujarata hu,
Mai apne dard ki had se gujarata hu.
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mai jab tak dil-o-dimag se zinda rahunga 
har saal is tarikh pe sharminda rahunga 
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उम्मीद को कल तक की और मोहलत उधार दी है, 
आजकी शाम फीर तेरे मुंतजीर गुजार दी है. 
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जब तेरे शहर से होकर आता है, 
चाँद दामन में क्या क्या लाता है
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सुना आँगन-ओ-दीवार-ओ-दर देखो. 
बच्चो के बड़े होने का असर देखो. 
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फिर टूटना है, बिखरना है मुझे, 
फिर तेरे शहर से गुजरना है मुझे.
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ऐसा नहीं की तेरे बर्ताव पे ऐतराज़ नहीं, 
मै नाखुश हु बहोत, हा मगर नाराज़ नहीं. 
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