Sunday 17 January 2016

नज़्म

मुझमे कोई मरा है कल शब्,
जिस्म से रूह तक मातम है,
बड़ा करीबी किरदार था मेरा,
वक़्त बेवक्त काम आया था,
वो मुझसे था की मै उससे,
अब पता चलेगा उसके जाने के बाद,
कई हबीब औ रकीब मेरे,
बस उसीको जानते थे,
मै महज़ एक पहनावा था,
ताकि जुड़ने में आसानी हो,
अब डरता हु खाली सुखा जिस्म लिए,
अब कैसे अपनी पहचान कहु,
उसका अपना जिस्म भी नहीं था,
फिर भी एक खालीपन है,
शक्ल औ सूरत होकर भी,
कोई भी पहचान नहीं है,
अब कोई कैसे दफ़्न करे,
और मज़ार पे क्या लिखे,
कौन मरा, कब पैदा हुआ था?
ये भी क्या रवाज़ ए दुनिया,
बस जिस्मो का जशन औ मातम,
हालाकी सब जुड़े हुए है,
एक दूजे के किरदारों से,

मुझमे एक किरदार मरा है,
यतीम जिस्म अभी ज़िंदा है।

तन्हा हु मै।


वो कहता है हासिल ए जां हु मै।
मै जानता हु की तन्हा हु मै।

दिल में शर्मिन्दगी, ग़मज़दा आँखे,
इसके अलावा मेरी जां कहा हु मै?
मै जानता हु की तन्हा हु मै।

इश्क ओ ज़फ़ा फुरक़त औ उम्मीद,
बारहा बर्दाश्त की इन्तेहां हु मै।
मै जानता हु की तन्हा हु मै।

मै शर्मिंदा कर देता हु उसे बेटा होकर,
वो हर बार कह देती है की मां हु मै।
मै जानता हु की तन्हा हु मै।

वो जिसे मोड़ कहकर तू चल दिया था,
मुड़कर देख अब भी वहा हु मै।
मै जानता हु की तन्हा हु मै।

बदल डाले।

सारी शिकायते सभी मुश्किल बदल डाले।
चल यु करे एक दुसरे से दिल बदल डाले।

रास्ते जो अलग होने लगे है तो यु करे,
कोई सुलह करके मंज़िल बदल डाले।
चल यु करे एक दुसरे से दिल बदल डाले।

बाबस्ता मुझसे उसने कुछ लिखा है रेत पर
समंदर से कहो अपना साहिल बदल डाले।
चल यु करे एक दुसरे से दिल बदल डाले।

अदब इतना तो मोहब्बत का लाज़िम है खुदा,
मौत दे मुझे बस मेरा क़ातिल बदल डाले।
चल यु करे एक दुसरे से दिल बदल डाले।

जूरुरी है 'शफ़क़' ये हूनर अब तुम भी सिखलो,
खुदको न बदल पाए तो महफ़िल बदल डाले।
चल यु करे एक दुसरे से दिल बदल डाले।