Friday 12 November 2021

चल दीवाने चलते है

चल दीवाने चलते है।
चल मयखाने चलते है।

देख तू सच मत कह देना,
यहा सिर्फ बहाने चलते है।
चल मयखाने चलते है।

तन्हा रात में साथ मेरे,
कुछ ख्वाब पुराने चलते है।
चल मयखाने चलते है।

रिन्द लडखडाये तो फिर,
खुद पैमाने चलते है।
चल मयखाने चलते है।

दीवाने बनाते है राहें,
फिर उसपे सयाने चलते है।
चल मयखाने चलते है।

ये चाँद, सितारे, अब्र औ हवा,
मेरे साथ ख़ज़ाने चलते है।
चल मयखाने चलते है।

Monday 1 November 2021

इजाज़त

तुझे अभी थकने की इजाज़त नही है।

कश्ती है बादबानी, समंदर भी बातूफान है,
यकायक जमीं पे जैसे टूटा आसमान है,
माना ये सफर शाक है, दुश्वार है बहोत, 
माना ये बहोत मुश्किल, पेचीदा इम्तेहान है,
पर ये दौर है फ़क़त, कोई क़यामत नही है।
तुझे अभी थकने की इजाज़त नही है।

जो हो रहा है उसपे तेरा क्या कोई ज़ोर है?
हालात सख्त है मगर तू भी कहा कमज़ोर है?
बदलाव ही एक सच है जो सब पे अमल है,
ऐतबार कर रात के उस पार उजली भोर है।
ना सोच तुझपे उसकी नज़र ए इनायत नही है।
तुझे अभी थकने की इजाज़त नही है।

विपरीत है हालात संयम से काम ले ज़रा,
जो जीतना है अन्ततः, युद्ध से विराम ले ज़रा,
यही वक़्त है खुदको आज़मा के ज़रा देख ले,
खुदकी मदद के वास्ते बस खुदका नाम ले ज़रा।
खुदसे बड़ी दुनिया मे कोई सदाक़त नही है।
तुझे अभी थकने की इजाज़त नही है।

ये दौर, जाने अनजाने है कर रहा बेहतर तुझे,
देखना काम आएंगे तजुर्बे उम्रभर तुझे,
उन मुश्किलो से लड़ रहा है देख हो बेबाक तू,
बेइंतेहा जिनसे कभी लगता रहा है डर तुझे।
शफ़क ज़िन्दगी की तुझसे अदावत नही है।
तुझे अभी थकने की इजाज़त नही है।







किरदार

ऐसा नही की कहानी में मेरा किरदार अच्छा था।
फिर भी उभर के आया, मैं अदाकार अच्छा था।

ये क़ुरबतो ने खड़े कर दिए है मसायल कितने,
सोचता हूं, मैं इस पार, वो उस पार अच्छा था।
फिर भी उभर के आया, मैं अदाकार अच्छा था।

ये तूने क्या कर दिया इसे 'रिश्ता' बनाकर,
इससे कई सौ गुना मेरा 'बस प्यार' अच्छा था।
फिर भी उभर के आया, मैं अदाकार अच्छा था।

हालांकि अपने आप मे था नाकामियाब ही,
वो जो ज़मानेभर को सलाहगार अच्छा था।
फिर भी उभर के आया, मैं अदाकार अच्छा था।

आंखों में चमक, तबस्सुम, रुख पे ताज़गी ना थी,
बिंदिया, चुनर, चूड़ियां, गले का हार अच्छा था।
फिर भी उभर के आया, मैं अदाकार अच्छा था।

किनारा

इससे जुदा क्या और नज़ारा होगा।
उस पार भी रेत ही का किनारा होगा।

ये क्या जन्नत औ दोज़ख़ की बात करते हो,
कुछ करो की इस ज़मी पे गुज़ारा होगा।
उस पार भी रेत होगी, किनारा होगा।

बचा लिया है ठोकरों ने बड़े हादसो से,
हो सकता है ये उसका इशारा होगा।
उस पार भी रेत होगी, किनारा होगा।

कश्तियों ने मुसाफ़िर कुछ डुबोये होंगे,
समंदर ने कुछ को पार उतारा होगा।
उस पार भी रेत होगी, किनारा होगा।

बाकि सबने किया होगा मेरी बातों पे यकीं,
बस उसने मेरे चेहरे को निहारा होगा।
उस पार भी रेत होगी, किनारा होगा।