Monday 3 May 2010

क्षनिकाए

मेरे चहरे पे एक परत चढ़
गयी है उदासी की इन दीनो,
तुम आ जाओ तो एक तबस्सुम
ही खील जाये इस रुख पर,
कुछ तो दरारे पड़ेगी इन परतो पे,
कुछ तो कम होगा ये रुखापन .
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कुछ कुछ ज़ुर्रिया पड़
गयी है मेरी शक्ल पर,
कई दीन हुए तुने प्यार
से सहलाया नहीं मेरे चहरे को,
उम्र ही बुढा नहीं करती इंसान को
कुछ और भी सबब होते है.
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अल्फाज़ कमज़ोर हो गए है इन दीनो,
हजारो खर्च करता हु रोज़,
पर उसके सवालो के जवाब नहीं दे पाता,
कल मेरी खामोशी ने उसको सारे
जवाब दे दिए.
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