Friday 28 May 2010

शोर बहोत है

शायद यहापर शोर बहोत है,
या लफ्ज मेरे कमज़ोर बहोत है.

जंग छिड़ी है दोनों में,
और नाज़ुक इश्क की डोर बहोत है.
या लफ्ज मेरे कमज़ोर बहोत है.

मेरे इश्क की हार मुकम्मल,
उसकी नफ़रत में जोर बहोत है.
या लफ्ज मेरे कमज़ोर बहोत है.

इश्क में हार का लुफ्त अलग है,
जीत को खेल और बहोत है.
या लफ्ज मेरे कमज़ोर बहोत है.

Wednesday 12 May 2010

कुछ देर खामोश रहो....

कुछ देर खामोश रहो,
बस देखती रहो मेरे चहरे को,
और पढो उन सारी दलीलों को,
उन सारी शिकायतों और तकलीफों को,
उस बहस पे भी गौर करो
जिन्हें लफ्ज पूरा नहीं कर पाए,
और शायद कभी कर भी न पाएंगे

मेरी हाथो की रेखाओ पे,
चेहरा ही रख दो,
कुछ तो खूबसूरती आ
जाये मेरे मुकद्दर में.
कुछ देर खामोश रहो,
बस देखती रहो मेरे चहरे को.

मेरे इन थके हुए कंधो पे अपना
सर रखदो सुकून से
कुछ तो रहत मिले
इन झुके कांधो को बोझ से.
कुछ देर खामोश रहो,
बस देखती रहो मेरे चहरे को.

इज़ाज़त दो अपनी आँखों को
कुछ कहने की,
जस्बातो को कुछ इशारे दो,
मेरी गज़लों में शायद वो
पुराणी रवानी ही लौट आये.
कुछ देर खामोश रहो,
बस देखती रहो मेरे चहरे को.

Monday 3 May 2010

क्षनिकाए

मेरे चहरे पे एक परत चढ़
गयी है उदासी की इन दीनो,
तुम आ जाओ तो एक तबस्सुम
ही खील जाये इस रुख पर,
कुछ तो दरारे पड़ेगी इन परतो पे,
कुछ तो कम होगा ये रुखापन .
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कुछ कुछ ज़ुर्रिया पड़
गयी है मेरी शक्ल पर,
कई दीन हुए तुने प्यार
से सहलाया नहीं मेरे चहरे को,
उम्र ही बुढा नहीं करती इंसान को
कुछ और भी सबब होते है.
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अल्फाज़ कमज़ोर हो गए है इन दीनो,
हजारो खर्च करता हु रोज़,
पर उसके सवालो के जवाब नहीं दे पाता,
कल मेरी खामोशी ने उसको सारे
जवाब दे दिए.
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