Wednesday 1 September 2010

दो लफ्ज...

दिल की धड़कन थी तेज बहोत, कैसे थे क्या हालात कहे,
बस दो लफ्जो की सूरत में उसने कितने जज्बात कहे.

झुकी हुई नज़रो की हया, और कुछ हैरानी लफ्जो की,
दोहराते हुए उस मंजर को कैसी बीती क्या रात कहे.
बस दो लफ्जो की सूरत में उसने कितने जज्बात कहे.

उसने संभाले रखे थे कुछ एहसास सदियों से सीने में,
कुछ तासुर ने उसके बोल दिए, कुछ आँखों की बरसात कहे.
बस दो लफ्जो की सूरत में उसने कितने जज्बात कहे.

वो कितना छुपाती है मुझसे, कभी हर्फो को कभी चेहरे को,
अब उसकी तबस्सुम मुझसे, उसके दिल की हर बात कहे.
बस दो लफ्जो की सूरत में उसने कितने जज्बात कहे.

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