Thursday 23 January 2014

सम्भाला है..

बुलंदी पे रहे लेकिन वो अपनापन सम्भाला है,
नयी पुश्तो ने कुछ ऐसे घर आँगन सम्भाला है.

गहनो से जियादा महफूज रखती है खिलौनो को,
हर एक संदूक में माँ ने मेरा बचपन सम्भाला है.
नयी पुश्तो ने कुछ ऐसे घर आँगन सम्भाला है.

फिसल जाऊ जवानी में ये मुमकिन ही नहीं लगता
बचपन से ही मेलो में अपना मन संभाला है.
नयी पुश्तो ने कुछ ऐसे घर आँगन सम्भाला है.
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चल समझौता करले...

ज़िंदगी छोड़ सब तकरार, चल समझौता करले,
मानली मैंने खुदसे हार, चल समझौता करले।

 ये रिश्तो के बही खाते, नफ़ा नुकसान की बाते,
मुझे आता नहीं व्यापार, चल समझौता करले।
मानली मैंने खुदसे हार, चल समझौता करले।

कई रिश्ते कई पहलू, ये उम्मीदे ये आरजू,
निबाहू कैसे सब किरदार, चल समझौता करले।
मानली मैंने खुदसे हार, चल समझौता करले।

मै यु सब में बटा, आखिर किसीका भी ना हो पाया,
माँ भी कहती है अबकी बार, चल समझौता करले।
मानली मैंने खुदसे हार, चल समझौता करले।

अच्छा होना नहीं लेकिन अच्छा लगना जरुरी है,
मुझसे होगा न ये श्रृंगार, चल समझौता करले।
मानली मैंने खुदसे हार, चल समझौता करले।

तबियत नहीं मिलती...

एक तो हर किसीसे अपनी तबियत नहीं मिलती,
जिससे मिलती है, उसे मेरे लिए फुर्सत नहीं मिलती।

हज़ारो लोग मिलते है वैसे मिलने को रोजाना,
कभी किस्मत नहीं मिलती, कही नियत नहीं मिलती।
जिससे मिलती है, उसे मेरे लिए फुर्सत नहीं मिलती।

इश्क़ काफी नहीं, तकाजे और भी होते है रिश्ते के,
जहा दिल मिल भी जाते है, वह सेहत नहीं मिलती।
जिससे मिलती है, उसे मेरे लिए फुर्सत नहीं मिलती।

मै अब भी ढूँढता हु  तू किसीमे फिरसे मिल जाये,
वो राहत, वो सुकूं वो दरमियाँ कुर्बत नहीं मिलती।
जिससे मिलती है, उसे मेरे लिए फुर्सत नहीं मिलती।

'शफक' किस दौर में,  किस दौर कि उम्मीद करते हो.
इश्क का लुत्फ़ मिलता है यहाँ शिद्दत नहीं मिलती।
जिससे मिलती है, उसे मेरे लिए फुर्सत नहीं मिलती।

Wednesday 22 January 2014

सिरहाने रखकर सोता हु

यादो कि चिलमन पे कितने जमाने रखकर सोता हु,
रोज़ाना  उम्मीद कि गठरी सिरहाने रखकर सोता हु.

सहर वो मेरी आँखों में देखके मुझसे कहता है,
क्या मै अपनी आँखों में मयखाने रखकर सोता हु.
रोज़ाना  उम्मीद कि गठरी सिरहाने रखकर सोता हु.

जब तीखी तीखी हक़ीक़तों से आँखे जलनी लगती है,
तब पलको पे मखमल से अफ़साने रखकर सोता हु.
रोज़ाना  उम्मीद कि गठरी सिरहाने रखकर सोता हु.

सब उम्मीदे, सारे ख्वाब, ख़ुशफैमी औ अफ़साने,
नींद को ललचाने शायद ये  बहाने रखकर सोता हु .
रोज़ाना  उम्मीद कि गठरी सिरहाने रखकर सोता हु.

आखो को देख ज़रा...

शर्मिन्दा, झुकी हुयी आखो को देख ज़रा,
मेरी इन थकी हुयी आखो को देख ज़रा.

हमारे दरमियाँ क्या बचा है ये न पूछ,
बस तुझपे रुकी हुयी आखो को देख ज़रा.
मेरी इन थकी हुयी आखो को देख ज़रा.

 मुझे भी आ गया है आंसू छुपाने का हूनर,
तुझीसे सीखी हुयी आखो को देख ज़रा.
मेरी इन थकी हुयी आखो को देख ज़रा.

तुझसे बाबस्ता गज़ले अब भी छलकती है 'शफक',
तुनेही लिखी हुयी आँखों को देख ज़रा.
मेरी इन थकी हुयी आखो को देख ज़रा.

Saturday 11 January 2014

तॆरॆ वास्तॆ...

सॊचता हु  तॆरॆ वास्तॆ ऐसा क्या हु मै,
तॆरी जमीन हु की तॆरा आसमा हु मै.

मुझॆ सॊच जरा और खुदकॊ आइनॆ मॆ दॆख,
तॆरॆ रुख की सबसॆ दिलकश अदा हु मै.
तॆरी जमीन हु की तॆरा आसमा हु मै.

कभी खुदकॊ सुन, तनहा यु ही मॆरी तरन्नुम मॆ,
गज़ल का शॆर मुकम्मल है तु, उर्दु जबा हु मै.
तॆरी जमीन हु की तॆरा आसमा हु मै.

एक‌ दुसरॆ सॆ मुद्दतॊ की दुरीयॊ कॆ बाद,
अब् भी मुझमॆ बची है तु और तुझमॆ बचा हु मै.
तॆरी जमीन हु की तॆरा आसमा हु मै.

तु गज़ल‍‍‍‍-ऒ-रुबाई-ऒ-नज़म् है मॆरॆ लीयॆ,
तॆरी मसुमीयत-ऒ-शॊखीया-ऒ-फलसफा हु मै.
तॆरी जमीन हु की तॆरा आसमा हु मै.

जातॆ हुयॆ 'शफक' भी अपनॆ साथ लॆ गयॆ?
उस दीन सॆ धुन्डता हु मुझमॆ कहा हु मै.
तॆरी जमीन हु की तॆरा आसमा हु मै.