Sunday 24 April 2016

परवरदिगार

ग़मगीन रख, मुश्किल बना बेकरार कर,
नाउम्मीद न मुझे बस परवरदिगार कर।

मेरा ही मुझसे छिनकर, क्या हुआ हासिल,
मै तुझसे बड़ा लगने लगा तुझिसे हारकर।
नाउम्मीद न मुझे बस परवरदिगार कर.

मुझे आजमाने में कही ऐसा ना हो खुदा,
तुझे मंदिर में फिरसेें रखदु दिल से उतार कर।
नाउम्मीद न मुझे बस परवरदिगार कर।

इश्क जो नहीं तो क्यों जुडा नफ़रत के बहाने,
छोड़ दे, निज़ात पा, मुझे दरकिनार कर।
नाउम्मीद न मुझे बस परवरदिगार कर।

हमेशा ये दरख़्त ऐसा ही बेनूर ना होगा,
बदलेगा "शफ़क़" मौसम ज़रा इंतज़ार कर।
नाउम्मीद न मुझे बस परवरदिगार कर

Monday 18 April 2016

निभा भी ना सकू

ज़िंदगी तुझसे वफ़ा और निभा भी ना सकू,
और ऐसा भी है की छोड़ के जा भी ना सकू।

ये रिश्ता जो मैंने अपने ही हाथो से बुना था
उसी रिश्ते को दिल ओ जां से निभा भी ना सकू।
और ऐसा भी है की छोड़ के जा भी ना सकू।

तुझे चाहा, तू मिल गया इतना आंसा तो नहीं,
मुश्किल भी नहीं इतना की पा भी ना सकू।
और ऐसा भी है की छोड़ के जा भी ना सकू।

दूर इतना ना निकल जाऊ मंजिल की ताब में,
आगाज़ पे फिर लौट के कभी आ भी ना सकू।
और ऐसा भी है की छोड़ के जा भी ना सकू।

ये भी क्या फासले, ये बेबसी, दर्द ए सुखन,
तुझी पे लिखे शेर तुझको सूना भी ना सकू।
और ऐसा भी है की छोड़ के जा भी ना सकू।

उसीसे इश्क है जो आया है चारागर बनके,
दर्द की इन्तेहा है, खुलके बता भी ना सकू।
और ऐसा भी है की छोड़ के जा भी ना सकू।