Wednesday 21 June 2017

ग़म क्यों है।

ज़िन्दगी इतनी संगदिल, बेरहम क्यों है।
बाद ए ग़म भी एक और नया ग़म क्यों है।

आँखों के हिस्से आंसू है जरुरत से ज्यादा,
लबो के नाम तबस्सुम इतनी कम क्यों है।
बाद ए ग़म भी एक और नया ग़म क्यों है।

तू मुझे भूलने का दावा करता है तो फिर,
तेरी आँखों का किनारा अभी तक नम क्यों है।
बाद ए ग़म भी एक और नया ग़म क्यों है।

जो तेरे खयाल पे भी हक़ नहीं है अब मेरा,
फिर ये सुखन ये पुरज़े ये क़लम क्यों है।
बाद ए ग़म भी एक और नया ग़म क्यों है।

चाँद रोया है जमीं से लिपट के रात शायद,
हर एक शाख़ के फूलों पे ये शबनम क्यों है।
बाद ए ग़म भी एक और नया ग़म क्यों है।

ग़ज़ल ढूंढता हु।

मैं इस तरह परेशानियों का हल ढूंढता हु।
ग़मो के मलबे में छुपी हुयी ग़ज़ल ढूंढता हु।

मेरा माज़ी ही रहेगा मुस्तक़बील मेरा,
मैं हर आज में बीता हुआ कल ढूंढता हु।
ग़मो के ढेर में छुपी हुयी ग़ज़ल ढूंढता हु।

सहर आईने में, यु आँखों में अपनी,
मैं नींद में पड़े हुए खलल ढूंढता हु।
ग़मो के ढेर में छुपी हुयी ग़ज़ल ढूंढता हु।

जज्बा ए मोहब्बत कहु या की मिल्कियत,
मैं अपने बच्चे में खुदकी शकल ढूंढता हु।
ग़मो के ढेर में छुपी हुयी ग़ज़ल ढूंढता हु।

तू मेरी आँखों में ढूंढता है सच्चाई की चमक,
मैं अक्सर तेरी आँखों में कँवल ढूंढता हु।
ग़मो के ढेर में छुपी हुयी ग़ज़ल ढूंढता हु।

Wednesday 14 June 2017

लगाव है।

कमरे की जो चीज़े है,जो रख रखाव है।
ये बेजान है सभी पर मुझको लगाव है।

बिखरी है चार सु, बेतरतीब सी पड़ी है,
मुझसे जुडी हर चीज़ में मेरा स्वभाव है।
ये बेजान है सभी पर मुझको लगाव है।

मैं बोलता वही हु, जो भी वो चाहता है,
है अहतराम उसका या फिर दबाव है?
ये बेजान है सभी पर मुझको लगाव है।

किस्से कहानियां है दोस्ती में जान देना,
अब देने को दोस्ती में केवल सुझाव है।
ये बेजान है सभी पर मुझको लगाव है।

ये रुतबा, ये पैसा, ये शोहरत, ये ताक़त,
मंज़िल ए मौत तक के ये सब पड़ाव है।
ये बेजान है सभी पर मुझको लगाव है।

ये तंज़ मोहब्बत का कैसे किसे बताये,
आँखों में है समंदर, रुख पे अलाव है।
ये बेजान है सभी पर मुझको लगाव है।

रिश्तो की सरहदों का नियम कोई टूटा है,
दोनों ही सिम्त देखो कितना तनाव है।
ये बेजान है सभी पर मुझको लगाव है।