Monday 11 December 2023

चालीस साल

साथ में जीते चालीस साल।
कैसे बीते चालीस साल।

खुशियां छोटी छोटी थी,
मीठी दाल और रोटी थी,
ज्यादातर संघर्ष रहा,
किंतु उसमे में भी हर्ष रहा,
ना मद मत्सर ना क्षोभ रहा,
ना ईर्ष्या थी ना लोभ रहा,
जो भी संभव था किया किए,
जो दे सकते थे दिया किए,
हम चरित्र में उत्कृष्ट रहे,
समाधानी संतुष्ट रहे,
बस हालातों में ढलते रहे,
जैसे भी हो पर चलते रहे,
हसीं हसीं में गुजरे कुछ,
कुछ आंसू पीते चालीस साल।
कैसे बीते चालीस साल।

प्रारंभ महल से सफर किया,
एक कमरे में भी बसर किया,
जीवनभर खुदको क्षीण किया,
पर बच्चों को स्वाधीन किया,
अगिनत समझौते किए मगर,
नैतिक मूल्यों पे जिए मगर,
विपदाओ में भी ध्यान रखा, 
गिरवी ना स्वाभिमान रखा,
धन संचित करना ना आया,
जो पा सकते थे ना पाया,
विपरीत समय मजबूर भी थे,
पर फिर भीतर मगरूर भी थे,
कितने ही जीवन भरने में,
हमने रीते चालीस साल।
कैसे बीते चालीस साल।

कुछ देर ठहर पीछे देखो,
कितने पौधे सींचे देखो,
ये इतने बरस समर्पण में,
चेहरा तो देखो दर्पण में,
ये झुर्री, लकीरें भालो पर,
ये उम्र के गढ्ढे गालों पर,
हम खर्च हुए कितना अब तक,
क्या मिला हमें उतना अब तक?
छोड़ो ये हिसाबी बाते है,
हमें कहां गणित ये आते है,
हम खुदके के लिए इंसाफ करे,
जो भी था सबको माफ करे,
बेशर्त ये साझेदारी है,
संघर्ष अभी भी जारी है,
जो तुम ना होते संगी तो,
कैसे जीते चालीस साल।
ऐसे बीते चालीस साल।

दोहे

गीता, रामायण, वेद का इतना सा है मर्म।
जो स्वाभाविक, सहज है वो केवल है, कर्म।
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'मैं' क्या है, मैं कौन हूं, बस इतना ले जान।
सारी उलझन है यहीं, यही तो एक निदान।
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बड़ी कहानी का कोई, छोटा सा किरदार।
है इतनी भूमिका तेरी, इतना सा विस्तार।
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जन्म जन्म के कर्म है जन्म जन्म के फल।
आज किये कोइ कर्म का फल चाहे है कल।
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दांव, पेच, बुद्धिमता, है तेरे हथियार।
सच्चाई है ढाल मेरी, अब मैं भी तैयार।

Sunday 11 June 2023

बिखरना था मुझे।

यूं ही गिरना था और उभरना था मुझे।
किनारों से मिलना था बिखरना था मुझे।

मैं मुश्किलों से भागकर भी कहाँ जाता,
गुज़रा जहां जहां से, गुजरना था मुझे।
किनारों से मिलना था बिखरना था मुझे।

बेहतर कोई मुझसे तेरी जुस्तजू में था,
तेरे दिल ओ नजर से उतरना था मुझे।
किनारों से मिलना था बिखरना था मुझे।

कैसा सवाब, क्या गुनाह, कैसी नेकियां,
तू जो भी करा रहा था करना था मुझे।
किनारों से मिलना था बिखरना था मुझे।

मैं रिंद था के साकी मेरे खुदा बता,
पीना था जाम ए ज़िस्त की भरना था मुझे।
किनारों से मिलना था बिखरना था मुझे।

Saturday 14 January 2023

तुम्हे गर राम बनना है..

तुम्हे गर राम बनना है, अयोध्या छोड़नी होगी।

मुकुट एक राजगद्दी का सजाकर थाल पे होगा,
तिलक संभव है रघुकुल राज का भी भाल पे होगा।
मां की ममता पिता का हर्ष चरम उत्कर्ष पे होंगे,
बिना संघर्ष तारे भाग्य के भी अर्श पे होंगे।
तुम्हे पर राजपथ से राह अपनी मोड़नी होगी।
तुम्हे गर राम बनना है, अयोध्या छोड़नी होगी।

वांशागत सरल जीवन तज पाओगे लेकिन तुम?
कर्मभूमि जो जंगल है वहा जाओगे लेकिन तुम?
मनाएंगे तुम्हे सब लौटने की जिद पकड़ लेंगे,
तुम्हारे आप्त बनकर बेड़ियां तुमको जकड़ लेंगे।
बड़ी मजबूत होंगी बेड़ियां पर तोड़नी होगी।
तुम्हे गर राम बनना है, अयोध्या छोड़नी होगी।

मान सम्मान सिंहासन है मिल सकता विरासत में,
कला नेतृत्व की लेकिन नही मिलती अमानत में।
समदर्शी, समावेशक, स्वयंभू और सहायक तुम,
शत् सदियों के बन सकते हो तब आदर्श नायक तुम।
कई कड़ियां तुम्हे हर मोड़ पे बस जोड़नी होगी।
तुम्हे गर राम बनना है, अयोध्या छोड़नी होगी।

जीवनभर ये पथ तुमसे किंतु परित्याग मांगेगा,
कभी बनवास भेजेगा कभी बैराग मांगेगा।
'राजपथ' में सुविधा, सुख तथा प्रहर्ष है संभव,
'रामपथ' से ही लेकिन राम का उत्कर्ष है संभव।
कर्मभूमि के खातिर जन्मभूमि छोड़नी होगी।
तुम्हे गर राम बनना है, अयोध्या छोड़नी होगी।