Friday 13 May 2011

त्रिवेणी :


बस उसने हाथ छुड़ाया और चली गयी
फिर कभी मुड़कर नहीं देखा मुझको.

उम्र कितनी ही लम्बी हो मौत हिचकी भर का वक़्त लगता है.

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चाँद सहमा हुआ था कल रात,
सारे शहर में सन्नाटा था.

मेरे लिए दोनों जहाँ थी वो.
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कल देर तलक बैठा रहा उसके पास,
न उसने मुझे पहचाना, न मैंने उसको.

ख्वाब कभी कभार हकीकत बयां करते है.
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Tuesday 10 May 2011

अब वक़्त है....

अब वक़्त है, बेहतर मौजूदा हालात करू,
कुछ देर कही बैठू, खुदसे कुछ बात करू.


सारे तजुर्बो और शिकस्तो से सिखु,
और कुछ काबू में ये अल्हड जज्बात करू.
कुछ देर कही बैठू, खुदसे कुछ बात करू.

वक़्त ने करवट अबके मेरी तरफ ली है,
जो तुने किया था क्या वो तेरे साथ करू?
कुछ देर कही बैठू, खुदसे कुछ बात करू.

इस सवाल का तू ही जवाब है 'माँ' शायद,
किसकी गोद में सर रखु, कहा रात करू?
कुछ देर कही बैठू, खुदसे कुछ बात करू.

Monday 9 May 2011


कल रात दफ़न कर आया हु


कल रात दफ़न कर आया हु,
वो ख्वाब जो कल शाम मरे.

अश्को से नहलाया पहले,
आहो से फिर पोछा भी,
तेरी यादो का अत्तर छींटा,
पलकों के सहारे बैठाया फिर,
सारी खोकली बाते रखदी,
सारे झूटे वादे परोसे,
जो बहोत पसंद थे ख्वाबो को,
फटी पुराणी, काफी खस्ता,
रिश्ते की फिर चादर ली,
सारे टुकडे जोड़े फिरसे
दिल की तसल्ली की खातिर,
और कफ़न में रखे सारे,
अश्को के कुछ फुल बिछाए.
बड़ी हिफाजत से ढंका फिर,
उस मासूम से चेहरे को,
अब तक पलकों की शान थे सारे,
अब कांधे पे बोझ ही थे,

कल रात दफ़न कर आया हु,
वो ख्वाब जो कल शाम मरे.