Wednesday 12 May 2010

कुछ देर खामोश रहो....

कुछ देर खामोश रहो,
बस देखती रहो मेरे चहरे को,
और पढो उन सारी दलीलों को,
उन सारी शिकायतों और तकलीफों को,
उस बहस पे भी गौर करो
जिन्हें लफ्ज पूरा नहीं कर पाए,
और शायद कभी कर भी न पाएंगे

मेरी हाथो की रेखाओ पे,
चेहरा ही रख दो,
कुछ तो खूबसूरती आ
जाये मेरे मुकद्दर में.
कुछ देर खामोश रहो,
बस देखती रहो मेरे चहरे को.

मेरे इन थके हुए कंधो पे अपना
सर रखदो सुकून से
कुछ तो रहत मिले
इन झुके कांधो को बोझ से.
कुछ देर खामोश रहो,
बस देखती रहो मेरे चहरे को.

इज़ाज़त दो अपनी आँखों को
कुछ कहने की,
जस्बातो को कुछ इशारे दो,
मेरी गज़लों में शायद वो
पुराणी रवानी ही लौट आये.
कुछ देर खामोश रहो,
बस देखती रहो मेरे चहरे को.

1 comment:

Anonymous said...

Nice gazal...


U are really nicely God gifted with a very good gift of words...


Keep on making such nice gazals