Friday 24 February 2017

नज़र नहीं आते।

सभीको ये नायाब हुनर नहीं आते।
मैं रोता हु, पर आंसू नज़र नहीं आते।

हर मुसाफिर को ढूंढनी है छाव अपने लिए।
किसी के वास्ते चलके शज़र नहीं आते।
मैं रोता हु, पर आंसू नज़र नहीं आते।

रास्ते गांव से शहर के है एकतरफा,
ये वापिस गांव फिर लौटकर नहीं आते।
मैं रोता हु, पर आंसू नज़र नहीं आते।

नहीं ऐसा भी नहीं है की तुम्हे भूल गए,
हां अब याद भी इतने मगर नही आते।
मैं रोता हु, आंसू नज़र नहीं आते।

याद आने का भी सलिखा नहीं है तुमको,
इतनी शिद्दत से इस कदर नहीं आते।
मैं रोता हु, पर आंसू नज़र नहीं आते।

ये अशआर 'शफ़क़' के कोई गुलाम नहीं है,
क्या हुआ बुलाने पे गर नहीं आते।
मैं रोता हु, पर आंसू नज़र नहीं आते।

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