Tuesday 28 February 2017

टकराव पर


ज़हन औ दिल टकराव पर।
नाख़ून लगेंगे घांव पर।

शाखों के हिस्से धुप लिखी,
जड़ो का हक़ है छाँव पर।
नाख़ून लगेंगे घांव पर।

हम हद ए इश्क़ के पार हुए,
वो अब भी है लगाव पर।
नाख़ून लगेंगे घांव पर।

जिंदा रहने की ख्वाहिश में,
यहां जान लगी है दांव पर।
नाख़ून लगेंगे घांव पर।

बीच सफर हिम्मत टूटी,
इल्ज़ाम लगा है पाँव पर।
नाख़ून लगेंगे घांव पर।

शहरों को बड़ा बनाने में,
बड़ा क़र्ज़ बढ़ा है गांव पर।
नाख़ून लगेंगे घांव पर।

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