Thursday 16 February 2017

ख्वाब

आपस में उलझ पड़े कुछ ख्वाब।
बिल्कुल बच्चो से लड़े कुछ ख्वाब।

यतीम कर गए थे तुम जिनको,
मेरी आँखों में पले बढ़े कुछ ख्वाब।
देर तक बच्चो से लड़े कुछ ख्वाब।

कोई सोया था पुरसुकूं बाहों में,
रातभर मैंने पढ़े कुछ ख्वाब।
देर तक बच्चो से लड़े कुछ ख्वाब।

बुलंदी, कामयाबी, नाम ओ इनाम,
ख़ामख़ा ही मढ़े कुछ ख्वाब।
देर तक बच्चो से लड़े कुछ ख्वाब।

ख़त्म कब होगी क़तार आँखों पे,
थके गए खड़े खड़े कुछ ख्वाब।
देर तक बच्चो से लड़े कुछ ख्वाब।

मजबूरन सलवटों में छोड़ आया,
रात से ज्यादा बड़े कुछ ख्वाब।
देर तक बच्चो से लड़े कुछ ख्वाब।

रातभर नींद गुलशन सी रही,
शाख़ से ऐसे झड़े कुछ ख्वाब।
देर तक बच्चो से लड़े कुछ ख्वाब।

रात की ओढनी सितारों वाली,
रेशमी धागों से जड़ें कुछ ख्वाब।
देर तक बच्चो से लड़े कुछ ख्वाब।

याद तेरी ही दिलाते है मुझे,
बेसबब यु ही अड़े कुछ ख्वाब।
देर तक बच्चो से लड़े कुछ ख्वाब।

2 comments:

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
Ajit Pandey said...

Thank you