Thursday 16 February 2017

ये ना पूछो

ये ना पूछो कैसे जागे, और फिर कैसे सोये है।
पूरी शब् तनहाई में, खुदसे लिपटकर रोये है।

गिनती के दो चार ही लम्हे हल्की फुल्की बातो के,
उन यादो के भारी सफ़हे फिर बरसो तक ढोये है।
पूरी शब् तनहाई में, खुदसे लिपटकर रोये है।

कोई अपना छूट गया था, सदियों तक ग़मगीन रहे,
और फ़लक को देखो उसने कितने तारे खोये है।
पूरी शब् तनहाई में, खुदसे लिपटकर रोये है।

सफर में कितने फुल खीले, जाने कितने ख़ार चुभे,
कुछ कुदरत ने रख्खे होंगे, ज्यादातर हमने बोये है।
पूरी शब् तनहाई में, खुदसे लिपटकर रोये है।

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