Wednesday 22 January 2014

सिरहाने रखकर सोता हु

यादो कि चिलमन पे कितने जमाने रखकर सोता हु,
रोज़ाना  उम्मीद कि गठरी सिरहाने रखकर सोता हु.

सहर वो मेरी आँखों में देखके मुझसे कहता है,
क्या मै अपनी आँखों में मयखाने रखकर सोता हु.
रोज़ाना  उम्मीद कि गठरी सिरहाने रखकर सोता हु.

जब तीखी तीखी हक़ीक़तों से आँखे जलनी लगती है,
तब पलको पे मखमल से अफ़साने रखकर सोता हु.
रोज़ाना  उम्मीद कि गठरी सिरहाने रखकर सोता हु.

सब उम्मीदे, सारे ख्वाब, ख़ुशफैमी औ अफ़साने,
नींद को ललचाने शायद ये  बहाने रखकर सोता हु .
रोज़ाना  उम्मीद कि गठरी सिरहाने रखकर सोता हु.

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