Saturday 11 January 2014

तॆरॆ वास्तॆ...

सॊचता हु  तॆरॆ वास्तॆ ऐसा क्या हु मै,
तॆरी जमीन हु की तॆरा आसमा हु मै.

मुझॆ सॊच जरा और खुदकॊ आइनॆ मॆ दॆख,
तॆरॆ रुख की सबसॆ दिलकश अदा हु मै.
तॆरी जमीन हु की तॆरा आसमा हु मै.

कभी खुदकॊ सुन, तनहा यु ही मॆरी तरन्नुम मॆ,
गज़ल का शॆर मुकम्मल है तु, उर्दु जबा हु मै.
तॆरी जमीन हु की तॆरा आसमा हु मै.

एक‌ दुसरॆ सॆ मुद्दतॊ की दुरीयॊ कॆ बाद,
अब् भी मुझमॆ बची है तु और तुझमॆ बचा हु मै.
तॆरी जमीन हु की तॆरा आसमा हु मै.

तु गज़ल‍‍‍‍-ऒ-रुबाई-ऒ-नज़म् है मॆरॆ लीयॆ,
तॆरी मसुमीयत-ऒ-शॊखीया-ऒ-फलसफा हु मै.
तॆरी जमीन हु की तॆरा आसमा हु मै.

जातॆ हुयॆ 'शफक' भी अपनॆ साथ लॆ गयॆ?
उस दीन सॆ धुन्डता हु मुझमॆ कहा हु मै.
तॆरी जमीन हु की तॆरा आसमा हु मै.

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