Saturday 20 August 2022

मैं

मुझसे ये हालात बने, फिर हालातों से मैं।
रोज़ाना ख़ुदको बुनता हूँ, इन हाथों से मैं।

तेरी बातें बुरी लगे, तू इतना भी तो पास नही,
हां थोड़ा आहत हु, पर खुदकी बातों से मैं।
रोज़ाना ख़ुदको बुनता हूँ, इन हाथों से मै।

मुख़्तलिफ़ है दोनों बस, पर दोनों क़ामिल नही,
ज़हनी तौर पे वो बेहतर है, जज्बातों से मैं।
रोज़ाना ख़ुदको बुनता हूँ, इन हाथों से मै।

दो मसअले,हल हो जायें तो जीने में आसानी हो,
दिन मुझसे नाराज़ बहोत है, और रातों से मैं।
रोज़ाना ख़ुदको बुनता हूँ, इन हाथों से मै।

सब्ज़ जमीं है कही, कही पर मिट्टी के घर टूटे है,
दो पहलू है, क्या सीखूं अब बरसातों से मैं।
रोज़ाना ख़ुदको बुनता हूँ, इन हाथों से मै।

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