Tuesday 30 August 2022

नही लगता

खुलके हँसता है, उसे कोई डर नही लगता,
वो अब तक ज़िन्दगी से बाख़बर नही लगता।

इत्तेफ़ाक़न मिला, जुड़ गया होगा शायद,
वो हमराह अब भी मुझे हमसफर नही लगता।
वो अब तक ज़िन्दगी से बाख़बर नही लगता।

बाद तेरे, किसी भी और को खोकर के मुझे,
बुरा लगता तो है, उतना मगर नही लगता।
वो अब तक ज़िन्दगी से बाख़बर नही लगता।

मेरा ख़ामोश रहना बोलता करता है उसे,
मेरी बातों का जबकि कुछ असर नही लगता।
वो अब तक ज़िन्दगी से बाख़बर नही लगता।

इस हद तक डरा रखा था 'शफ़क़' को तूने ,
अब किसी बात का मुझे डर नही लगता।
वो अब तक ज़िन्दगी से बाख़बर नही लगता।

दिन में सब खामियां शायद अयान होती है,
रात में इतना भी बुरा, ये शहर नही लगता।
वो अब तक ज़िन्दगी से बाख़बर नही लगता।

वो जानता है कीमत हर एक गलती की,
वो बेखौफ़ होगा, बेख़बर नही लगता।
वो अब तक ज़िन्दगी से बाख़बर नही लगता।

मैं जानता हूं कहां, कितना झुकना है, मेरा,
मंदिर में जाते हुए, चौखट को सर नही लगता।
वो अब तक ज़िन्दगी से बाख़बर नही लगता।

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