Wednesday 17 October 2018

कहने नही देती।

बहोत कहना है, मजबूरिया कहने नही देती।
नदी खुदको यू समंदर तक बहने नही देती।

ज़िन्दगी शैतान बहोत है मेरे बेटी की तरह ही,
वो कोई चीज़ अपनी जगह रहने नही देती।
नदी खुदको यूं समंदर तक बहने नही देती।

उसके अपने ही कई ग़म है लेकिन हा मेरी माँ,
मुझे अब तक मेरे भी दर्द कुछ सहने नही देती।
नदी खुदको यूं समंदर तक बहने नही देती।

ऊंचा हुआ हूं बैठके वालिद के कांधो पे,
मेरी बुनियाद इमारत मेरी ढहने नही देती।
नदी खुदको यूं समंदर तक बहने नही देती।

तजुर्बा ए ज़िन्दगी है, ये सोने की चूड़ियां,
माँ बेटी को बस श्रृंगार के गहने नही देती।
नदी खुदको यूं समंदर तक बहने नही देती।

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