Sunday 2 December 2018

सोचा बहोत

सोचा बहोत, किया कुछ भी नही।
अलावा ख्वाब के मियां कुछ भी नही।

मौत ने ज़िन्दगी छीन ली आखिर,
और बदले में दिया कुछ भी नही।
अलावा ख्वाब के मियां कुछ भी नही।

मैं कुछ भी नही हु दुनिया के लिए,
मेरी नज़र में दुनिया कुछ भी नही।
अलावा ख्वाब के मियां कुछ भी नही।

मैं उसके रूबरू जाता ही नही,
सामने सूरज के दीया कुछ भी नही?
अलावा ख्वाब के मियां कुछ भी नही।

उसने कुछ ऐसे ज़िन्दगी बीता दी,
मयखाने आकर पीया कुछ भी नही।
अलावा ख्वाब के मियां कुछ भी नही।

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