Monday 11 December 2017

किस्मत

कितना कुछ खोया है फिर भी,
कितना कुछ है खोने को,
कोई सबब मील ही जाता है,
अपनी किस्मत पर रोने को।

ये गुमनामी और तनहाई,
हमने चुनी है अपने लिए,
तेरे जैसे जाने माने,
हो सकते थे हम भी होने को।
कोई सबब मील ही जाता है,
अपनी किस्मत पर रोने को।

बच्चे का मन था खेला,
तोड़ दिया फिर छोड़ दिया,
अब बच्चे की आदत पड़ गई,
उस नादान खिलौने को।
कोई सबब मील ही जाता है,
अपनी किस्मत पर रोने को।

मखमल का बिस्तर औ चादर,
रेशम की तकिया सिरहाने,
सब चीज़े आराम की है,
बस नींद नहीं है सोने को।
कोई सबब मील ही जाता है,
अपनी किस्मत पर रोने को।

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