Monday 18 April 2016

निभा भी ना सकू

ज़िंदगी तुझसे वफ़ा और निभा भी ना सकू,
और ऐसा भी है की छोड़ के जा भी ना सकू।

ये रिश्ता जो मैंने अपने ही हाथो से बुना था
उसी रिश्ते को दिल ओ जां से निभा भी ना सकू।
और ऐसा भी है की छोड़ के जा भी ना सकू।

तुझे चाहा, तू मिल गया इतना आंसा तो नहीं,
मुश्किल भी नहीं इतना की पा भी ना सकू।
और ऐसा भी है की छोड़ के जा भी ना सकू।

दूर इतना ना निकल जाऊ मंजिल की ताब में,
आगाज़ पे फिर लौट के कभी आ भी ना सकू।
और ऐसा भी है की छोड़ के जा भी ना सकू।

ये भी क्या फासले, ये बेबसी, दर्द ए सुखन,
तुझी पे लिखे शेर तुझको सूना भी ना सकू।
और ऐसा भी है की छोड़ के जा भी ना सकू।

उसीसे इश्क है जो आया है चारागर बनके,
दर्द की इन्तेहा है, खुलके बता भी ना सकू।
और ऐसा भी है की छोड़ के जा भी ना सकू।

3 comments:

shivani said...

No words for this nazm ..

shivani said...

No words for this nazm ..

Unknown said...

Thank you jee