Sunday 24 April 2016

परवरदिगार

ग़मगीन रख, मुश्किल बना बेकरार कर,
नाउम्मीद न मुझे बस परवरदिगार कर।

मेरा ही मुझसे छिनकर, क्या हुआ हासिल,
मै तुझसे बड़ा लगने लगा तुझिसे हारकर।
नाउम्मीद न मुझे बस परवरदिगार कर.

मुझे आजमाने में कही ऐसा ना हो खुदा,
तुझे मंदिर में फिरसेें रखदु दिल से उतार कर।
नाउम्मीद न मुझे बस परवरदिगार कर।

इश्क जो नहीं तो क्यों जुडा नफ़रत के बहाने,
छोड़ दे, निज़ात पा, मुझे दरकिनार कर।
नाउम्मीद न मुझे बस परवरदिगार कर।

हमेशा ये दरख़्त ऐसा ही बेनूर ना होगा,
बदलेगा "शफ़क़" मौसम ज़रा इंतज़ार कर।
नाउम्मीद न मुझे बस परवरदिगार कर

2 comments:

shivani said...

Subhaanallah. ... perwerdigaar ne arz sun li.... beautiful. ..

Unknown said...

Thank you Shivani...