Monday 30 November 2015

रात कुछ और जले..

रात कुछ और जले, पिघल जाए।
ख्वाब टूटे, नींद में ख़लल जाए।

वो नज़र चुराकर यु निकला पहलू से,
वक़्त से बचकर जैसे कोई पल जाए।
ख्वाब टूटे, नींद में ख़लल जाए।

जितना जीना था जलना था, जल चूका हु,
सूरज से कहदो की अब तो ढल जाए।
ख्वाब टूटे, नींद में ख़लल जाए।

इतनी शिद्दत से मौत को गले लगाया है,
ज़िन्दगी देख ले अगर तो जल जाए।
ख्वाब टूटे, नींद में ख़लल जाए।

संभल के गुफ्तगू करना, हबिबो से रकीबो से,
बातो बातो में मेरी बात न निकल जाए।
ख्वाब टूटे, नींद में ख़लल जाए।

पहले वो, फिर उम्मीद अब यादे उनकी,
रेत हाथो से जैसे फिसल जाए।
ख्वाब टूटे, नींद में ख़लल जाए।

कभी जो टूटकर रोने लगो तो मुमकीन है,
सबके रहते भी तुम्हे मेरी कमी खल जाए।
ख्वाब टूटे, नींद में ख़लल जाए।

ये तो तौहीन है 'शफ़क़' मयखाने की,
नशे में भी उसके जिक्र पे संभल जाए।
ख्वाब टूटे, नींद में ख़लल जाए।

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