Tuesday 24 November 2015

किधर जाऊ

किसकी जानिब देखू, किधर जाऊ,
ज़िंदा रहने के लिए सोचता हु मर जाऊ।

असर ताउम्र रहेगा मेरे होने, ना होने का
मै वो दुआ नहीं जो बेअसर जाऊ।
ज़िंदा रहने के लिए सोचता हु मर जाऊ।

माँ तू ही कहती थी बड़ा मासूम दिल हु मै,
अब तू ही कहती की मै सुधर जाऊ।
ज़िंदा रहने के लिए सोचता हु मर जाऊ।

हालात खिंच के ले जाते है मयखानो में,
मै तो चाहता हु हर शाम अपने घर जाऊ।
ज़िंदा रहने के लिए सोचता हु मर जाऊ।

खुदा संभाल मेरे ख्वाब,उम्मीदे औ हसरते,
आखरी सफ़र में कम से कम बेफ़िकर जाऊ।
ज़िंदा रहने के लिए सोचता हु मर जाऊ।

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