Tuesday 26 June 2012

जब अपनी हस्ती में होता हु..

जब अपनी हस्ती में होता हु,
खुद ही में कभी जब खोता हु,
समंदर को सिरहाने रखकर यु,
मौजो के तकिये पे सोता हु.

साहील पैरो को चूमता है,
बाँहों में समंदर झूमता है
बेजान रेत के सीने में,
मै दो नामो को बोता हु.

गहराई में हर राज़ मेरा,
है उथल पुथल अंदाज़ मेरा
पलको के किनारे खुश्क मगर,
आँखों में समंदर ढोता हु.

मै भी इतना ही फैला हु,
कही साफ़ कही कुछ मैला हु,
जब तू साहील बन जाती है,
मै भी तो समंदर होता हु.

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