Friday 13 May 2011

त्रिवेणी :


बस उसने हाथ छुड़ाया और चली गयी
फिर कभी मुड़कर नहीं देखा मुझको.

उम्र कितनी ही लम्बी हो मौत हिचकी भर का वक़्त लगता है.

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चाँद सहमा हुआ था कल रात,
सारे शहर में सन्नाटा था.

मेरे लिए दोनों जहाँ थी वो.
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कल देर तलक बैठा रहा उसके पास,
न उसने मुझे पहचाना, न मैंने उसको.

ख्वाब कभी कभार हकीकत बयां करते है.
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3 comments:

Anonymous said...

"उम्र कितनी ही लम्बी हो मौत हिचकी भर का वक़्त लगता है..."

shivani said...

कल देर तलक बैठा रहा उसके पास,
न उसने मुझे पहचाना, न मैंने उसको.

ख्वाब कभी कभार हकीकत बयां करते है.
ati uttam.....naman aisi lekhni ko....bahut sundar .....

Ajit P said...

Jee Dhanyawad!!