Wednesday 24 January 2024

प्राण प्रतिष्ठा


गर्वित है हम, प्राण प्रतिष्ठा,
प्रभु राम की कर पाए,
जयघोष, वंदना दो अक्षर के,
दिव्य नाम की कर पाए।
रामराज के स्वप्नपूर्ति का,
असली इम्तेहान है अब।
उस मूरत में प्राण है अब।

ये संकल्प, ये दृढ़ निश्चय,
उम्मीद है सबके मन में हों।
राजा में हो राम की निष्ठा,
राम प्रतिष्ठित जन में हो।
कोदंड धनुष है प्रजा राम की,
’राजा’ राम का बाण है अब।
उस मूरत में प्राण है अब।

केवल प्राण प्रतिष्ठा न थी,
पूर्ण प्रतिष्ठित राम हुए
धर्म, मर्म, मर्यादा, नीति,
सहित अनुष्ठित राम हुए।
उस मूरत को दिव्य दृष्टि है,
वो ना केवल पाषाण है अब।
उस मूरत में प्राण है अब।

राग, द्वेष, सत्तालोलुपता,
राम राज अनुकूल नहीं,
अहम, अनीति, आडंबर, सब
रामराज के मूल नही।
त्याग, क्षमा, कर्मठता, करुणा,
राजा के परिमाण है अब।
उस मूरत में प्राण है अब।

अब आवश्यक है मुखिया भी,
राजा भरत सम राज करे।
जो रामनीति के विपरीत हो,
वो सब करने में लाज करे।
भारतवर्ष के आगम के,
राम ही तो परित्राण है अब।
उस मूरत में प्राण है अब।


 

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