Wednesday 24 January 2024

मन नहीं भरता।

रोज़ाना धोखे खाने से मन नहीं भरता।
कैसे हो तुम की ज़माने से मन नहीं भरता।

ये इश्क भी है बिल्कुल जैसे की मयकशी,
ताउम्र ये मयखाने से मन नहीं भरता।
कैसे हो तुम की ज़माने से मन नहीं भरता।

मुमकिन ही नहीं कोई नया आए नज़र में,
जब तक के पुराने से मन नहीं भरता।
कैसे हो तुम की ज़माने से मन नहीं भरता।

उनका शुमार न हो अगर सामयिन में,
फिर महफिल को सुनाने से मन नहीं भरता। 
कैसे हो तुम की ज़माने से मन नहीं भरता।

वैसे तो हर एक चीज से अब ऊब गए है,
फिर भी क्यों जीए जाने से मन नहीं भरता।
कैसे हो तुम कि ज़माने से मन नहीं भरता।

काफ़ी है गुजर बसर को अब तक की कमाई,
कंबख्त क्यों कमाने से मन नहीं भरता?
कैसे हो तुम कि ज़माने से मन नहीं भरता।

बेकरां है ’शफ़क’ मन के तक़ाजों का समंदर,
किसी न किसी बहाने से मन नहीं भरता।
कैसे हो तुम की ज़माने से मन नहीं भरता।



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