Friday 9 December 2011

चाँद खिड़की पे..

चाँद खिड़की पे ठहरा रहा रातभर,
नींद पे सख्त पहरा रहा रातभर.


आँख जलती रही और पिघलती रही,
सर्द मौसम में सहरा रहा रातभर.
नींद पे सख्त पहरा रहा रातभर.

ओस की बूंद थी या चाँद का दर्द था ?
सदमा क्या था की गहरा रहा रातभर?
नींद पे सख्त पहरा रहा रातभर.

5 comments:

दर्पण साह said...

Pure Awesomeness.
All the ghazals....

After so much said about meter, behar, kafiya and radif...
...Here is the 'relief' :

Ajit P said...

Thanks Bro!!!

shivani said...

निश्चित रूप से चाँद का ही दर्द था .......लाजवाब ......

shivani said...

निश्चित रूप से चाँद का ही दर्द था .......लाजवाब ......

Ajit Pandey said...

Bahot bahot shukriya Shivani!!!