Monday 3 October 2011

कुछ अधूरे शेर...

मैंने उसके इश्क को, जिंदा रखा है अपनी नब्जो में,
और वो मुझको बहलाता है, कुछ हल्के फुल्के लफ्जो में.

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तुझसे बाबस्ता कुछ लिखने की जब सोचता हु,
हज़ार बाते लिखता हु, और पोछता हु.


कलम की नोक तोड़ देती है दम कागज़ पे,
यु खयालो को तोड़कर, हर्फो को नोचता हु.
हज़ार बाते लिखता हु और पोछता हु.
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अनदेखा किया, हैरां हुए, जो मै फिर दिखा नहीं,
तुमको जफा करने का भी तो सलिखा नहीं.


जहन मोरचा भेजा था तेरी खिलाफत में
कलम ने जिद भी की, मगर हमने लिखा नहीं.
तुमको जफा करने का भी तो सलिखा नहीं.

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