Friday 15 April 2011

बोझल आँखे

बोझल आँखे, बिखरी जुल्फे,
कुछ सुस्त लकीरे माथे पे,
कुछ थका हुआ चेहरा फिर भी,
हलकी सी तबस्सुम होठो पे

इल्म नहीं अब कहा हो तुम,
कैसी हो और किस जहाँ हो तुम,
पर अब भी हर शब् मेरी ही,
बाहों में आकर सोती हो,
कुछ देर लिपटकर रोती हो,
मेरे चेहरे को तकती हो,
फिर आँखों पे बोसा रखती हो.

अक्सर लोग बिछड़ जाते है,
अपनी राह को बढ़ जाते है,
इश्क कभी पर मरता नहीं,
वो जिंदा रहता है यु ही,
कभी गज़लों में, कभी बातो में,
कुछ यादो में, जज्बातो में,
उन बेमौसम बरसातो में,
और कुछ ऐसी रातो में.

6 comments:

Anonymous said...

uptill now its very very different creation.

Keep it up..

Ajit P said...

Hmmm..

Anand Talnikar said...

क्या बात है अजीत...

Ajit P said...

Thank you boss..

shivani said...

अक्सर लोग बिछड़ जाते है,
अपनी राह को बढ़ जाते है,
इश्क कभी पर मरता नहीं,
वो जिंदा रहता है यु ही,
कभी गज़लों में, कभी बातो में,
कुछ यादो में, जज्बातो में,
उन बेमौसम बरसातो में,
और कुछ ऐसी रातो में.
kamaal hai....aise jazbaaton ko mera salaam....bahut khoob ajit...

Ajit P said...

Thanks a lot Shivani..