Wednesday 5 January 2011


एक खरोच आई थी


एक खरोच आई थी उस रिश्ते के सीने पे,
कई दिनों तक कुरेदते रहे वो दोनों,
उसका इलाज भी नहीं किया किसीने,
यु तो कहने को वो रिश्ता उनकी औलाद से कम न था,
पता नहीं ऐसा क्या हुआ की उसकी जख्म को अनदेखा किया,
बड़ी बेरुखी से पेश आते थे वो दोनों उससे,
उसकी चीखता, चिल्लाता, रोता रहता रात रातभर
कोई नहीं था पर चुप करने को, समझाने को.
उसका जख्म धीरे धीरे तासुर बन गया,
तकलीफ उस हद तक पहुच गयी की उसने अपनी साँसे रोक ली,
सुना है कल रात मौत हो गयी उस रिश्ते की,
बहोत देर तक रोते रहे वो दोनों, बहोत कोशिश की उसे जगाने की,
बहोत मनाया उसे, बहोत सहलाया उसके जख्म को,
दवा, दुआ दोनों बेअसर थी मगर,
वो रिश्ता नहीं जागा उस नींद से,
दम तोड़ दिया था उसने, आँखे बंद कर ली थी,
कोई वजह नहीं थी उसके पास शायद जीने की.
अब वो दोनों के पास कुछ भी नहीं बचा है.
अब वो दोनों अकेले रहते है,
जिन्दा है अब भी पर जी नहीं पाते.
वो रिश्ता एक जिंदगी था, जिसे वो दोनों जिते थे.
अब उस रिश्ते की कुछ तस्वीरे है दोनों के पास,
कुछ यादे है, कुछ किस्से है.
साँसों का बोझ बहोत भारी होता है,
पता नहीं कितने दिनों तक ढो पाएंगे अकेले.

एक खरोच आई थी उस रिश्ते के सीने पे.

1 comment:

Anonymous said...

Ek kharochki taraf dhyan na deneki vajahse jakhm itna gehra ban jata hai ki maut ka bhi karan ban jata hai...

Nice collection of words!