Monday 11 December 2023

दोहे

गीता, रामायण, वेद का इतना सा है मर्म।
जो स्वाभाविक, सहज है वो केवल है, कर्म।
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'मैं' क्या है, मैं कौन हूं, बस इतना ले जान।
सारी उलझन है यहीं, यही तो एक निदान।
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बड़ी कहानी का कोई, छोटा सा किरदार।
है इतनी भूमिका तेरी, इतना सा विस्तार।
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जन्म जन्म के कर्म है जन्म जन्म के फल।
आज किये कोइ कर्म का फल चाहे है कल।
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दांव, पेच, बुद्धिमता, है तेरे हथियार।
सच्चाई है ढाल मेरी, अब मैं भी तैयार।

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