Wednesday 21 June 2017

ग़म क्यों है।

ज़िन्दगी इतनी संगदिल, बेरहम क्यों है।
बाद ए ग़म भी एक और नया ग़म क्यों है।

आँखों के हिस्से आंसू है जरुरत से ज्यादा,
लबो के नाम तबस्सुम इतनी कम क्यों है।
बाद ए ग़म भी एक और नया ग़म क्यों है।

तू मुझे भूलने का दावा करता है तो फिर,
तेरी आँखों का किनारा अभी तक नम क्यों है।
बाद ए ग़म भी एक और नया ग़म क्यों है।

जो तेरे खयाल पे भी हक़ नहीं है अब मेरा,
फिर ये सुखन ये पुरज़े ये क़लम क्यों है।
बाद ए ग़म भी एक और नया ग़म क्यों है।

चाँद रोया है जमीं से लिपट के रात शायद,
हर एक शाख़ के फूलों पे ये शबनम क्यों है।
बाद ए ग़म भी एक और नया ग़म क्यों है।

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