Sunday 17 January 2016

नज़्म

मुझमे कोई मरा है कल शब्,
जिस्म से रूह तक मातम है,
बड़ा करीबी किरदार था मेरा,
वक़्त बेवक्त काम आया था,
वो मुझसे था की मै उससे,
अब पता चलेगा उसके जाने के बाद,
कई हबीब औ रकीब मेरे,
बस उसीको जानते थे,
मै महज़ एक पहनावा था,
ताकि जुड़ने में आसानी हो,
अब डरता हु खाली सुखा जिस्म लिए,
अब कैसे अपनी पहचान कहु,
उसका अपना जिस्म भी नहीं था,
फिर भी एक खालीपन है,
शक्ल औ सूरत होकर भी,
कोई भी पहचान नहीं है,
अब कोई कैसे दफ़्न करे,
और मज़ार पे क्या लिखे,
कौन मरा, कब पैदा हुआ था?
ये भी क्या रवाज़ ए दुनिया,
बस जिस्मो का जशन औ मातम,
हालाकी सब जुड़े हुए है,
एक दूजे के किरदारों से,

मुझमे एक किरदार मरा है,
यतीम जिस्म अभी ज़िंदा है।

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