Monday 12 January 2015

दिल डरा सा है...

उसकी चुप्पी में मशवरा सा है।
कुछ तो है दिल डरा सा है।

कई उम्मीदे दफ़न है इसमें,
मेरा दिल मक़बरा सा है।
कुछ तो है दिल डरा सा है।


ज़िंदगी सहरा हुयी है फिर भी,
लहजा अब भी हरा भरा सा है।
कुछ तो है दिल डरा सा है।

फासले इतने बढ़ गए कैसे?
फर्क दोनों में बस ज़रा सा है।
कुछ तो है दिल डरा सा है।

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