Monday 2 April 2012

कशमकश...

बड़ी देर से साहिल पे कशमकश में ठहरा हु,
समंदर मुझसे गहरा या इससे भी मै गहरा हु.

तजुर्बे कीमती होते है, मेरा सब कुछ है अब गिरवी
रूह मुझमे थी बचपन तक, मगर अब सिर्फ चेहरा हु.
समंदर मुझसे गहरा या इससे भी मै गहरा हु.

इसपे हैरां रहू, रोऊ या अनदेखा करू?
जिस माथे की रौनक था, उसी माथे का सहरा हु.
समंदर मुझसे गहरा या इससे भी मै गहरा हु.

2 comments:

shivani said...

सशक्त लेखन है .....तुम समंदर से भी गहरे हो ....इसमें कोई शक नहीं है .....

Ajit Pandey said...

Thanks a Lot!!! Tumhare comment hamesha mere liye important rahe hai!!