चाँद खिड़की पे..
चाँद खिड़की पे ठहरा रहा रातभर,
नींद पे सख्त पहरा रहा रातभर.
आँख जलती रही और पिघलती रही,
सर्द मौसम में सहरा रहा रातभर.
नींद पे सख्त पहरा रहा रातभर.
ओस की बूंद थी या चाँद का दर्द था ?
सदमा क्या था की गहरा रहा रातभर?
नींद पे सख्त पहरा रहा रातभर.
Friday, 9 December 2011
Wednesday, 16 November 2011
रात तनहा सहर तक जाएगी...
शाम फिर खाली हाथ आएगी,
रात तनहा सहर तक जाएगी.
करवटों में, कभी सुनी छतो पे,
रात क्या नींद ढूंड पायेगी?
रात तनहा सहर तक जाएगी.
चाँद खिड़की से झाकेगा आदतन,
चांदनी फिरसे दिल जलाएगी.
रात तनहा सहर तक जाएगी.
लफ्ज आँखों में झिलमिलायेंगे
नज़्म तकिये में सर छुपाएगी.
रात तनहा सहर तक जाएगी.
शाम फिर खाली हाथ आएगी,
रात तनहा सहर तक जाएगी.
करवटों में, कभी सुनी छतो पे,
रात क्या नींद ढूंड पायेगी?
रात तनहा सहर तक जाएगी.
चाँद खिड़की से झाकेगा आदतन,
चांदनी फिरसे दिल जलाएगी.
रात तनहा सहर तक जाएगी.
लफ्ज आँखों में झिलमिलायेंगे
नज़्म तकिये में सर छुपाएगी.
रात तनहा सहर तक जाएगी.
Monday, 17 October 2011
दोहे:
फसले सब लज्जीत हुई,खेतो ने किया उपवास,
माँ ने जब बेटा रखा गिरवी शहर के पास.
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देहातो की सडको सा मेरा जीवनमान,
दिन रहते तक भीड़ रहे, रातो में सुनसान.
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बंटवारे के अंत में सब बेटे चुपचाप,
जर जमीन तक ठीक था, कौन रखे माँ बाप.
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फसले सब लज्जीत हुई,खेतो ने किया उपवास,
माँ ने जब बेटा रखा गिरवी शहर के पास.
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देहातो की सडको सा मेरा जीवनमान,
दिन रहते तक भीड़ रहे, रातो में सुनसान.
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बंटवारे के अंत में सब बेटे चुपचाप,
जर जमीन तक ठीक था, कौन रखे माँ बाप.
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रुबाई 2: "Madhushala" Extended
घूंट घूंट पे फिर जलती है,
सीने में वो एक ज्वाला,
बात बात पे रो पड़ता है,
जाने क्यों पीनेवाला.
साकी तेरे दर पे भी अब,
सुकूं रिंद को नहीं मिलता,
मुझे रज़ा दे, तुझे मुबारक,
ये तेरी नयी मधुशाला.
____________________________________
साधू मौलवी ने बटवारा,
मंदिर मस्जिद का कर डाला,
मुस्लिप को पैमाना दिया,
हिन्दू के हाथो में प्याला.
वाईज गौर से देख जरा,
हिन्दू मुस्लिम की सोबत को,
प्रेम, इश्क है हर पैमाना,
काबा काशी है मधुशाला.
घूंट घूंट पे फिर जलती है,
सीने में वो एक ज्वाला,
बात बात पे रो पड़ता है,
जाने क्यों पीनेवाला.
साकी तेरे दर पे भी अब,
सुकूं रिंद को नहीं मिलता,
मुझे रज़ा दे, तुझे मुबारक,
ये तेरी नयी मधुशाला.
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साधू मौलवी ने बटवारा,
मंदिर मस्जिद का कर डाला,
मुस्लिप को पैमाना दिया,
हिन्दू के हाथो में प्याला.
वाईज गौर से देख जरा,
हिन्दू मुस्लिम की सोबत को,
प्रेम, इश्क है हर पैमाना,
काबा काशी है मधुशाला.
रुबाई : "Madhushala" Extended
बस बेहोशी की खातीर,
पिता है ये मतवाला,
सच्चाई से दूर रखेगी,
कब तक ये झूटी हाला
होश में जो ये देख लिया तो,
कैसे होश संभालूँगा,
मै मदिरा, मै ही साकी,
तनहा मेरी मधुशाला.
____________________________________
जरा हाथ कम्पन हुआ,
छलक गयी पुरी हाला,
जरा नशे में लडखडाया मै,
क्यों तुमने न संभाला,
मुझको साकी बड़ा नाज़ था,
तेरे नशे की शिद्दत पर,
कितने नाज़ुक प्याले थे सब,
बड़ी कमज़ोर थी मधुशाला.
बस बेहोशी की खातीर,
पिता है ये मतवाला,
सच्चाई से दूर रखेगी,
कब तक ये झूटी हाला
होश में जो ये देख लिया तो,
कैसे होश संभालूँगा,
मै मदिरा, मै ही साकी,
तनहा मेरी मधुशाला.
____________________________________
जरा हाथ कम्पन हुआ,
छलक गयी पुरी हाला,
जरा नशे में लडखडाया मै,
क्यों तुमने न संभाला,
मुझको साकी बड़ा नाज़ था,
तेरे नशे की शिद्दत पर,
कितने नाज़ुक प्याले थे सब,
बड़ी कमज़ोर थी मधुशाला.
Monday, 10 October 2011
एक नज़्म.....
कल यु ही बिखरे कमरे को समटते हुए,
कुछ पुरजे मिले काफी पुराने, काफी खस्ता,
कुछ हर्फ़ दिखे धुन्दले धुन्दले, हा तुमसे ही बाबस्ता,
आंसुओ की बूंदों के कुछ ताज़ा तरीन निशाँ भी थे,
उंगली से जब चखकर देखा,
गम का जायका वही था अब भी, नमकीन बहोत,
कागज़ भी कमज़ोर हो चूका था,
हर्फो के बोझ से बेजार बहोत,
तुम्हारी खुशबु आ रही थी हल्की हल्की,
पर तुमने छुआ नहीं था उस पुर्जे को कभी,
शायद उसी दिन तुम मुझसे आखरी दफा मिली थी,
शायद इस पुरजे में लपेटकर रखा था मैंने उस विसाल-इ-शब् को,
तारीख मिट चुकी होगी या शायद लिखी ही न हो,
पर धुल हटाकर देखू तो वो दिन साफ़ नज़र आता है अब भी,
स्याही से लिखे हर्फ़ वक़्त के साथ धुन्दले हो गए है सभी तक़रीबन,
सूखे हुए आसुओ के निशाँ लेकिन अब भी वैसे ही है ताज़ा, नमकीन.
काश वो आखरी नज़्म मैंने स्याही से न लिखी होती....
कल यु ही बिखरे कमरे को समटते हुए,
कुछ पुरजे मिले काफी पुराने, काफी खस्ता,
कुछ हर्फ़ दिखे धुन्दले धुन्दले, हा तुमसे ही बाबस्ता.
कल यु ही बिखरे कमरे को समटते हुए,
कुछ पुरजे मिले काफी पुराने, काफी खस्ता,
कुछ हर्फ़ दिखे धुन्दले धुन्दले, हा तुमसे ही बाबस्ता,
आंसुओ की बूंदों के कुछ ताज़ा तरीन निशाँ भी थे,
उंगली से जब चखकर देखा,
गम का जायका वही था अब भी, नमकीन बहोत,
कागज़ भी कमज़ोर हो चूका था,
हर्फो के बोझ से बेजार बहोत,
तुम्हारी खुशबु आ रही थी हल्की हल्की,
पर तुमने छुआ नहीं था उस पुर्जे को कभी,
शायद उसी दिन तुम मुझसे आखरी दफा मिली थी,
शायद इस पुरजे में लपेटकर रखा था मैंने उस विसाल-इ-शब् को,
तारीख मिट चुकी होगी या शायद लिखी ही न हो,
पर धुल हटाकर देखू तो वो दिन साफ़ नज़र आता है अब भी,
स्याही से लिखे हर्फ़ वक़्त के साथ धुन्दले हो गए है सभी तक़रीबन,
सूखे हुए आसुओ के निशाँ लेकिन अब भी वैसे ही है ताज़ा, नमकीन.
काश वो आखरी नज़्म मैंने स्याही से न लिखी होती....
कल यु ही बिखरे कमरे को समटते हुए,
कुछ पुरजे मिले काफी पुराने, काफी खस्ता,
कुछ हर्फ़ दिखे धुन्दले धुन्दले, हा तुमसे ही बाबस्ता.
Tuesday, 4 October 2011
तन्हाई...
कोई आवाज़ जब इन दरिचो से आती है,
मेरी तन्हाई चौंकती है, सहम जाती है.
हर आहट पे बेवजह गौर करता हु,
एक उम्मीद है जो अब भी आजमाती है.
मेरी तन्हाई चौंकती है, सहम जाती है.
तेरे न होने पे रोकर के जो थक जाऊ,
तुम होते तो? इस ख्याल पे रुलाती है.
मेरी तन्हाई चौंकती है, सहम जाती है.
मै आईने में देखता हु चेहरा अपना,
दीवार पे लगी 'वो' तस्वीर मुस्कुराती है.
मेरी तन्हाई चौंकती है, सहम जाती है.
कोई आता है चूमता है मेरे हाथो को.
कोई आवाज़ मेरी गज़ले गुनगुनाती है.
मेरी तन्हाई चौंकती है, सहम जाती है.
कोई आवाज़ जब इन दरिचो से आती है,
मेरी तन्हाई चौंकती है, सहम जाती है.
हर आहट पे बेवजह गौर करता हु,
एक उम्मीद है जो अब भी आजमाती है.
मेरी तन्हाई चौंकती है, सहम जाती है.
तेरे न होने पे रोकर के जो थक जाऊ,
तुम होते तो? इस ख्याल पे रुलाती है.
मेरी तन्हाई चौंकती है, सहम जाती है.
मै आईने में देखता हु चेहरा अपना,
दीवार पे लगी 'वो' तस्वीर मुस्कुराती है.
मेरी तन्हाई चौंकती है, सहम जाती है.
कोई आता है चूमता है मेरे हाथो को.
कोई आवाज़ मेरी गज़ले गुनगुनाती है.
मेरी तन्हाई चौंकती है, सहम जाती है.
Monday, 3 October 2011
कुछ अधूरे शेर...
मैंने उसके इश्क को, जिंदा रखा है अपनी नब्जो में,
और वो मुझको बहलाता है, कुछ हल्के फुल्के लफ्जो में.
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तुझसे बाबस्ता कुछ लिखने की जब सोचता हु,
हज़ार बाते लिखता हु, और पोछता हु.
कलम की नोक तोड़ देती है दम कागज़ पे,
यु खयालो को तोड़कर, हर्फो को नोचता हु.
हज़ार बाते लिखता हु और पोछता हु.
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अनदेखा किया, हैरां हुए, जो मै फिर दिखा नहीं,
तुमको जफा करने का भी तो सलिखा नहीं.
जहन मोरचा भेजा था तेरी खिलाफत में
कलम ने जिद भी की, मगर हमने लिखा नहीं.
तुमको जफा करने का भी तो सलिखा नहीं.
मैंने उसके इश्क को, जिंदा रखा है अपनी नब्जो में,
और वो मुझको बहलाता है, कुछ हल्के फुल्के लफ्जो में.
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तुझसे बाबस्ता कुछ लिखने की जब सोचता हु,
हज़ार बाते लिखता हु, और पोछता हु.
कलम की नोक तोड़ देती है दम कागज़ पे,
यु खयालो को तोड़कर, हर्फो को नोचता हु.
हज़ार बाते लिखता हु और पोछता हु.
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अनदेखा किया, हैरां हुए, जो मै फिर दिखा नहीं,
तुमको जफा करने का भी तो सलिखा नहीं.
जहन मोरचा भेजा था तेरी खिलाफत में
कलम ने जिद भी की, मगर हमने लिखा नहीं.
तुमको जफा करने का भी तो सलिखा नहीं.
Monday, 19 September 2011
रंजिश-ऐ-उम्र
न उन्होंने देखा, न बात की, ना सलाम लिया.
रंजिश-ऐ-उम्र का बदला था,कल शाम लिया.
हमे तो शौक है यु ज़िन्दगी से खेलने का,
बेवजह तुमने अपने सर पे इलज़ाम लिया.
रंजिश-ऐ-उम्र का बदला कल शाम लिया.
इससे पहले की अपनी नजर से गीर जाता,
शुकर है साकी, इन पैमानों ने थाम लिया.
रंजिश-ऐ-उम्र का बदला कल शाम लिया.
ज़माने बाद उनसे रूबरू होकर यु लगा,
मुद्दतो बाद रिंद ने हाथो जाम लिया.
रंजिश-ऐ-उम्र का बदला कल शाम लिया.
Monday, 12 September 2011
एक नज़्म: जिसने कल रात सोने नहीं दिया
चलो अब ये तकल्लुफ भी छोड़ दो,
मुझे देखकर शर्मिंदगी से मुस्कुराना,
एक सवाल 'कैसे हो' पूछकर,
जवाब में ' मै भी ठीक ही हु' बताना.
मुझको इल्म है सच कहोगी,
तो बहोत दर्द होगा मुझको,
पर क्या तुम्हारे तासुरो की जुबां नहीं जनता हु मै?
क्या तुम्हारे आँखों की चमक को नहीं महसूस कर सकता हु अब?
तुमको याद होगा, तुम्हारे आँखों की सुजन देखकर अश्को का हिसाब किया है कई दफा मैंने.
क्या तुम्हारे प्यार की शिद्दत को भूल चूका हु, की बस बातो को मान लूँगा?
मैंने तुम्हारे दर्द को तुम्हारी ख़ामोशी में महसूस किया है हमेशा.
तुम्हारी सिसकियो को पढ़ा है मैंने, सिर्फ उन्हें सुनकर तुम्हारे गम का अंदाजा लगाया है.
तुम्हारे होठो की कपकपाहट देखकर बता सकता हु तुम सच बोल रही हो या ...
मुझे तुम्हारे लफ्जो को समझना नहीं आता.
हमारे इश्क की जुबां में 'लफ्ज' कभी थे ही नहीं.
मैंने आज भी बस तुम्हारे तासुर पढ़े, नज़रे महसूस की,
तुम्हारे लफ्जो की दलीले झूटी थी न आज?
आज तुम क्यों खामोश नहीं थी " सबा "?
पर उस रिश्ते के लिए झूट भी क्यों बोले अब,
बेसबब उसकी मौत को क्यों मुश्किल करे.
मौत की तारीख तो मुकम्मल है उसकी.
बस इंतजार करो, और अगर याद रहे तो,
'उस' रोज़ कुछ आंसू बहा देना.
चलो अब ये तकल्लुफ भी छोड़ दो,
मुझे देखकर शर्मिंदगी से मुस्कुराना,
एक सवाल 'कैसे हो' पूछकर,
जवाब में ' मै भी ठीक हु' बताना.
चलो अब ये तकल्लुफ भी छोड़ दो,
मुझे देखकर शर्मिंदगी से मुस्कुराना,
एक सवाल 'कैसे हो' पूछकर,
जवाब में ' मै भी ठीक ही हु' बताना.
मुझको इल्म है सच कहोगी,
तो बहोत दर्द होगा मुझको,
पर क्या तुम्हारे तासुरो की जुबां नहीं जनता हु मै?
क्या तुम्हारे आँखों की चमक को नहीं महसूस कर सकता हु अब?
तुमको याद होगा, तुम्हारे आँखों की सुजन देखकर अश्को का हिसाब किया है कई दफा मैंने.
क्या तुम्हारे प्यार की शिद्दत को भूल चूका हु, की बस बातो को मान लूँगा?
मैंने तुम्हारे दर्द को तुम्हारी ख़ामोशी में महसूस किया है हमेशा.
तुम्हारी सिसकियो को पढ़ा है मैंने, सिर्फ उन्हें सुनकर तुम्हारे गम का अंदाजा लगाया है.
तुम्हारे होठो की कपकपाहट देखकर बता सकता हु तुम सच बोल रही हो या ...
मुझे तुम्हारे लफ्जो को समझना नहीं आता.
हमारे इश्क की जुबां में 'लफ्ज' कभी थे ही नहीं.
मैंने आज भी बस तुम्हारे तासुर पढ़े, नज़रे महसूस की,
तुम्हारे लफ्जो की दलीले झूटी थी न आज?
आज तुम क्यों खामोश नहीं थी " सबा "?
पर उस रिश्ते के लिए झूट भी क्यों बोले अब,
बेसबब उसकी मौत को क्यों मुश्किल करे.
मौत की तारीख तो मुकम्मल है उसकी.
बस इंतजार करो, और अगर याद रहे तो,
'उस' रोज़ कुछ आंसू बहा देना.
चलो अब ये तकल्लुफ भी छोड़ दो,
मुझे देखकर शर्मिंदगी से मुस्कुराना,
एक सवाल 'कैसे हो' पूछकर,
जवाब में ' मै भी ठीक हु' बताना.
Thursday, 18 August 2011
'शफक'
खुश्क आँखों से कभी ये जहां तो देख 'शफक'.
सर उठा के पूरा आसमां तो देख 'शफक'
तेरी ग़लतफ़हमी है, तू तनहा है इस सफ़र में,
नज़र घुमा के जरा कारवां तो देख 'शफक'.
सर उठा के पूरा आसमां तो देख 'शफक'
तेरे हर्फो को जान दी है उसकी तरन्नुम ने.
ग़ज़ल को छोड़, उसकी जुबां तो देख 'शफक'.
सर उठा के पूरा आसमां तो देख 'शफक'
इश्क के नाम पे लुटा है क्या क्या लोगो ने.
कभी यु गौर से जरा आइना तो देख 'शफक'.
सर उठा के पूरा आसमां तो देख 'शफक'
खुश्क आँखों से कभी ये जहां तो देख 'शफक'.
सर उठा के पूरा आसमां तो देख 'शफक'
तेरी ग़लतफ़हमी है, तू तनहा है इस सफ़र में,
नज़र घुमा के जरा कारवां तो देख 'शफक'.
सर उठा के पूरा आसमां तो देख 'शफक'
तेरे हर्फो को जान दी है उसकी तरन्नुम ने.
ग़ज़ल को छोड़, उसकी जुबां तो देख 'शफक'.
सर उठा के पूरा आसमां तो देख 'शफक'
इश्क के नाम पे लुटा है क्या क्या लोगो ने.
कभी यु गौर से जरा आइना तो देख 'शफक'.
सर उठा के पूरा आसमां तो देख 'शफक'
Tuesday, 16 August 2011
कुछ ख्वाबो की लाशे पड़ी है
आँखों की सरहद पर कुछ ख्वाबो की लाशे पड़ी है,
धुन्दला धुन्दला मंजर है और अश्को की भीड़ बड़ी है.
गौर से देखा लाशो को उनकी, अभी अभी के है सारे,
कितने मासूम है बच्चो से, हैरत है किसने मरे.
इस अजाब का गहरा असर है, पुरे चेहरे पे मातम है,
तनाव काफी है तसुरो में, और धड़कन कुछ मद्धम .
पलकों की बाहों में रखे है, कल तक आँखों का नूर थे वो,
ऐसा क्या था सोच रहा हु, की मरने को मजबूर थे वो?
मैंने सुना है, एक उम्मीदों की डोर थी दिल के कोने में,
उसके सहारे कई ख्वाब थे बेचैन, हकीकत होने में.
आँखों तक तो पहोच चुके थे, उस डोर को 'तुमने' तोड़ दिया,
अश्को को सैलाब भला क्यों, आँखों की तरफ ही मोड़ दिया.
बड़ी मशक्कत की लेकिन, बस मौत ही था अंजाम 'शफक'.
जिन आँखों में मौत हुई है, होगा उसपर ही इल्जाम 'शफक'.
आँखों की सरहद पर कुछ ख्वाबो की लाशे पड़ी है,
धुन्दला धुन्दला मंजर है और अश्को की भीड़ बड़ी है.
आँखों की सरहद पर कुछ ख्वाबो की लाशे पड़ी है,
धुन्दला धुन्दला मंजर है और अश्को की भीड़ बड़ी है.
गौर से देखा लाशो को उनकी, अभी अभी के है सारे,
कितने मासूम है बच्चो से, हैरत है किसने मरे.
इस अजाब का गहरा असर है, पुरे चेहरे पे मातम है,
तनाव काफी है तसुरो में, और धड़कन कुछ मद्धम .
पलकों की बाहों में रखे है, कल तक आँखों का नूर थे वो,
ऐसा क्या था सोच रहा हु, की मरने को मजबूर थे वो?
मैंने सुना है, एक उम्मीदों की डोर थी दिल के कोने में,
उसके सहारे कई ख्वाब थे बेचैन, हकीकत होने में.
आँखों तक तो पहोच चुके थे, उस डोर को 'तुमने' तोड़ दिया,
अश्को को सैलाब भला क्यों, आँखों की तरफ ही मोड़ दिया.
बड़ी मशक्कत की लेकिन, बस मौत ही था अंजाम 'शफक'.
जिन आँखों में मौत हुई है, होगा उसपर ही इल्जाम 'शफक'.
आँखों की सरहद पर कुछ ख्वाबो की लाशे पड़ी है,
धुन्दला धुन्दला मंजर है और अश्को की भीड़ बड़ी है.
Friday, 5 August 2011
परिंदे को आसमान दे दु.
अपने कमरे की तनहाई को जुबान दे दु,
पिंजरा खोल दू, परिंदे को आसमान दे दु.
खुदा तादाद में है, मंदिरों औ मस्जिदों में,
मिल जाये, तो इस शहर को इंसान दे दु.
पिंजरा खोल दू, परिंदे को आसमान दे दु.
खुदकुशी यु गर की जाये, तो खुद्दारी बनी रहे,
अपने नजरो से गिर जाऊ, अपनी जान दे दु.
पिंजरा खोल दू, परिंदे को आसमान दे दु.
ग़लतफ़हमी है, इस खेल में मै जान हारूँगा.
इश्क औ उम्मीद हर जाऊ तो फिर ईमान दे दु.
पिंजरा खोल दू, परिंदे को आसमान दे दु.
अपने कमरे की तनहाई को जुबान दे दु,
पिंजरा खोल दू, परिंदे को आसमान दे दु.
खुदा तादाद में है, मंदिरों औ मस्जिदों में,
मिल जाये, तो इस शहर को इंसान दे दु.
पिंजरा खोल दू, परिंदे को आसमान दे दु.
खुदकुशी यु गर की जाये, तो खुद्दारी बनी रहे,
अपने नजरो से गिर जाऊ, अपनी जान दे दु.
पिंजरा खोल दू, परिंदे को आसमान दे दु.
ग़लतफ़हमी है, इस खेल में मै जान हारूँगा.
इश्क औ उम्मीद हर जाऊ तो फिर ईमान दे दु.
पिंजरा खोल दू, परिंदे को आसमान दे दु.
Saturday, 30 July 2011
शाम ढल नहीं पायी
मेरी यादो की कफस से निकल नहीं पायी,
बरसों हुए पर वो शाम ढल नहीं पायी.
अपने हाथो से क़त्ल किये है तेरे निशां,
पुरजो का साथ मगर नज़्म जल नहीं पायी.
बरसों हुए पर वो शाम ढल नहीं पायी.
वक़्त के साथ चलती रही हो, अच्छा है,
क्या हुआ जो मेरे साथ चल नहीं पायी.
बरसों हुए पर वो शाम ढल नहीं पायी.
........
मेरी यादो की कफस से निकल नहीं पायी,
बरसों हुए पर वो शाम ढल नहीं पायी.
अपने हाथो से क़त्ल किये है तेरे निशां,
पुरजो का साथ मगर नज़्म जल नहीं पायी.
बरसों हुए पर वो शाम ढल नहीं पायी.
वक़्त के साथ चलती रही हो, अच्छा है,
क्या हुआ जो मेरे साथ चल नहीं पायी.
बरसों हुए पर वो शाम ढल नहीं पायी.
........
Sunday, 24 July 2011
दोहे
जो छुटा वो पास रहा, जो हासिल था वो दूर.
उसको वो मंजूर था, जो मुझको नामंजूर.
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हुआ प्रदुषण सोच में, गयी आँखों में धुल,
देहाती से हो बैठी शहर परख में भूल.
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भिन्न भिन्न रिश्ते सभी, एक है सबका सार.
पहले जितना प्यार था, अब उतना अधिकार.
जो छुटा वो पास रहा, जो हासिल था वो दूर.
उसको वो मंजूर था, जो मुझको नामंजूर.
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हुआ प्रदुषण सोच में, गयी आँखों में धुल,
देहाती से हो बैठी शहर परख में भूल.
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भिन्न भिन्न रिश्ते सभी, एक है सबका सार.
पहले जितना प्यार था, अब उतना अधिकार.
Thursday, 7 July 2011
तेरी यादो के छींटे है
रुखी सुखी जहन की मिटटी, कुछ तेरी यादो के छींटे है,
तीखे तजुर्बे है कुछ रखे, कुछ तेरे तसव्वुर मीठे है.
रूबरू हमसे तब करना, हम गहरी नींद में सोये हो,
मुझको यक़ीनन माफ़ करेंगे, लोग जो हमसे रूठे है.
तीखे तजुर्बे है कुछ रखे, कुछ तेरे तसव्वुर मीठे है.
तौफे के तुकडे तो समेटे, साथ भी ले जाओगे तुम,
बिखरे है अब तक कमरे में, कल रात जो रिश्ते टूटे है.
तीखे तजुर्बे है कुछ रखे, कुछ तेरे तसव्वुर मीठे है.
नादानी में लुट जाये तो, गलतफहमिया मत रखना,
हमने भी पतंगे काटी है, हमने भी मांजे लूटे है.
तीखे तजुर्बे है कुछ रखे, कुछ तेरे तसव्वुर मीठे है.
सब कहते है पहले वाली, बात 'शफक' अब नहीं आती,
पहले झूट लिखा करते थे, या अब सच में झूटे है.
तीखे तजुर्बे है कुछ रखे, कुछ तेरे तसव्वुर मीठे है.
रुखी सुखी जहन की मिटटी, कुछ तेरी यादो के छींटे है,
तीखे तजुर्बे है कुछ रखे, कुछ तेरे तसव्वुर मीठे है.
रूबरू हमसे तब करना, हम गहरी नींद में सोये हो,
मुझको यक़ीनन माफ़ करेंगे, लोग जो हमसे रूठे है.
तीखे तजुर्बे है कुछ रखे, कुछ तेरे तसव्वुर मीठे है.
तौफे के तुकडे तो समेटे, साथ भी ले जाओगे तुम,
बिखरे है अब तक कमरे में, कल रात जो रिश्ते टूटे है.
तीखे तजुर्बे है कुछ रखे, कुछ तेरे तसव्वुर मीठे है.
नादानी में लुट जाये तो, गलतफहमिया मत रखना,
हमने भी पतंगे काटी है, हमने भी मांजे लूटे है.
तीखे तजुर्बे है कुछ रखे, कुछ तेरे तसव्वुर मीठे है.
सब कहते है पहले वाली, बात 'शफक' अब नहीं आती,
पहले झूट लिखा करते थे, या अब सच में झूटे है.
तीखे तजुर्बे है कुछ रखे, कुछ तेरे तसव्वुर मीठे है.
Tuesday, 28 June 2011
त्रिवेणी
कुछ तस्वीरे निकाल ली थी उसने एल्बम से,
बहोत प्यार से खिचवाई थी कभी हमने,
काश कुछ पन्ने ज़िन्दगी के भी निकाल पाते हमेशा के लिए.
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तुमने जाते हुए मुस्कुराकर देखा था मेरी ओर,
लगा था तुम जरुर लौटकर आओगी.
यकीन नहीं होता एक मजाक क्या क्या कर सकता है.
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पहले इन्ही बातो में दिन गुजारा करते थे हम दोनों,
अब वो सारी बेमतलब की बाते फिजूल लगती है.
कुछ मेरी नजर बदलती गयी कुछ तुम चेहरे बदलते गए.
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कुछ तस्वीरे निकाल ली थी उसने एल्बम से,
बहोत प्यार से खिचवाई थी कभी हमने,
काश कुछ पन्ने ज़िन्दगी के भी निकाल पाते हमेशा के लिए.
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तुमने जाते हुए मुस्कुराकर देखा था मेरी ओर,
लगा था तुम जरुर लौटकर आओगी.
यकीन नहीं होता एक मजाक क्या क्या कर सकता है.
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पहले इन्ही बातो में दिन गुजारा करते थे हम दोनों,
अब वो सारी बेमतलब की बाते फिजूल लगती है.
कुछ मेरी नजर बदलती गयी कुछ तुम चेहरे बदलते गए.
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Monday, 27 June 2011
हथेली
कल गौर से देखा अपनी हथेली को,
कितनी लकीरे, कुछ गहरी, कुछ धुंदली सी,
आधी अधूरी कई लकीरे एक दूजे में उलझी हुई,
क्या पता क्या मायने है इनके, है भी या बस यु ही है ये सब.
मुझको अब भी याद है लेकिन,
उस दिन तुमने मेरी हथेली में अपनी लकीर दिखाई थी,
कितनी गहरी और पूरी थी उन दिनों,
उस लकीर के अलावा किसी और का मायना नहीं पता था मुझको,
अब वो दोनों लकीरे धुंदली है,
बस एक निशान भर बचा है उसके होने का.
तुम्हारी लकीर मेरे हाथो से अब बस मिटने को है,
एक और लकीर भी मिट जाएगी यक़ीनन मेरे उम्र की.
कल गौर से देखा अपनी हथेली को,
कितनी लकीरे, कुछ गहरी, कुछ धुंदली सी,
आधी अधूरी कई लकीरे एक दूजे में उलझी हुई,
क्या पता क्या मायने है इनके, है भी या बस यु ही है ये सब.
मुझको अब भी याद है लेकिन,
उस दिन तुमने मेरी हथेली में अपनी लकीर दिखाई थी,
कितनी गहरी और पूरी थी उन दिनों,
उस लकीर के अलावा किसी और का मायना नहीं पता था मुझको,
अब वो दोनों लकीरे धुंदली है,
बस एक निशान भर बचा है उसके होने का.
तुम्हारी लकीर मेरे हाथो से अब बस मिटने को है,
एक और लकीर भी मिट जाएगी यक़ीनन मेरे उम्र की.
Thursday, 2 June 2011
फुरकत के बाद........
अंजाम ये हुआ इश्क का फुरकत के बाद,
वो बड़े मसरूफ हो गए मुझसे फुर्सत के बाद.
मैंने यु भी ली है रंजिश खुदा से, खुदाई से,
कभी चाँद नहीं देखा तुझसे रुखसत के बाद.
वो बड़े मसरूफ हो गए मुझसे फुर्सत के बाद.
वक़्त रेंगता है लम्हा दर लम्हा बेजान सा.
लम्हों में रूह आ गयी थी तेरी शिरकत के बाद.
वो बड़े मसरूफ हो गए मुझसे फुर्सत के बाद.
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अंजाम ये हुआ इश्क का फुरकत के बाद,
वो बड़े मसरूफ हो गए मुझसे फुर्सत के बाद.
मैंने यु भी ली है रंजिश खुदा से, खुदाई से,
कभी चाँद नहीं देखा तुझसे रुखसत के बाद.
वो बड़े मसरूफ हो गए मुझसे फुर्सत के बाद.
वक़्त रेंगता है लम्हा दर लम्हा बेजान सा.
लम्हों में रूह आ गयी थी तेरी शिरकत के बाद.
वो बड़े मसरूफ हो गए मुझसे फुर्सत के बाद.
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Friday, 13 May 2011
त्रिवेणी :
बस उसने हाथ छुड़ाया और चली गयी
फिर कभी मुड़कर नहीं देखा मुझको.
उम्र कितनी ही लम्बी हो मौत हिचकी भर का वक़्त लगता है.
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चाँद सहमा हुआ था कल रात,
सारे शहर में सन्नाटा था.
मेरे लिए दोनों जहाँ थी वो.
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कल देर तलक बैठा रहा उसके पास,
न उसने मुझे पहचाना, न मैंने उसको.
ख्वाब कभी कभार हकीकत बयां करते है.
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बस उसने हाथ छुड़ाया और चली गयी
फिर कभी मुड़कर नहीं देखा मुझको.
उम्र कितनी ही लम्बी हो मौत हिचकी भर का वक़्त लगता है.
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चाँद सहमा हुआ था कल रात,
सारे शहर में सन्नाटा था.
मेरे लिए दोनों जहाँ थी वो.
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कल देर तलक बैठा रहा उसके पास,
न उसने मुझे पहचाना, न मैंने उसको.
ख्वाब कभी कभार हकीकत बयां करते है.
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Tuesday, 10 May 2011
अब वक़्त है....
अब वक़्त है, बेहतर मौजूदा हालात करू,
कुछ देर कही बैठू, खुदसे कुछ बात करू.
सारे तजुर्बो और शिकस्तो से सिखु,
और कुछ काबू में ये अल्हड जज्बात करू.
कुछ देर कही बैठू, खुदसे कुछ बात करू.
वक़्त ने करवट अबके मेरी तरफ ली है,
जो तुने किया था क्या वो तेरे साथ करू?
कुछ देर कही बैठू, खुदसे कुछ बात करू.
इस सवाल का तू ही जवाब है 'माँ' शायद,
किसकी गोद में सर रखु, कहा रात करू?
कुछ देर कही बैठू, खुदसे कुछ बात करू.
अब वक़्त है, बेहतर मौजूदा हालात करू,
कुछ देर कही बैठू, खुदसे कुछ बात करू.
सारे तजुर्बो और शिकस्तो से सिखु,
और कुछ काबू में ये अल्हड जज्बात करू.
कुछ देर कही बैठू, खुदसे कुछ बात करू.
वक़्त ने करवट अबके मेरी तरफ ली है,
जो तुने किया था क्या वो तेरे साथ करू?
कुछ देर कही बैठू, खुदसे कुछ बात करू.
इस सवाल का तू ही जवाब है 'माँ' शायद,
किसकी गोद में सर रखु, कहा रात करू?
कुछ देर कही बैठू, खुदसे कुछ बात करू.
Monday, 9 May 2011
कल रात दफ़न कर आया हु
कल रात दफ़न कर आया हु,
वो ख्वाब जो कल शाम मरे.
अश्को से नहलाया पहले,
आहो से फिर पोछा भी,
तेरी यादो का अत्तर छींटा,
पलकों के सहारे बैठाया फिर,
सारी खोकली बाते रखदी,
सारे झूटे वादे परोसे,
जो बहोत पसंद थे ख्वाबो को,
फटी पुराणी, काफी खस्ता,
रिश्ते की फिर चादर ली,
सारे टुकडे जोड़े फिरसे
दिल की तसल्ली की खातिर,
और कफ़न में रखे सारे,
अश्को के कुछ फुल बिछाए.
बड़ी हिफाजत से ढंका फिर,
उस मासूम से चेहरे को,
अब तक पलकों की शान थे सारे,
अब कांधे पे बोझ ही थे,
कल रात दफ़न कर आया हु,
वो ख्वाब जो कल शाम मरे.
Friday, 15 April 2011
बोझल आँखे
बोझल आँखे, बिखरी जुल्फे,
कुछ सुस्त लकीरे माथे पे,
कुछ थका हुआ चेहरा फिर भी,
हलकी सी तबस्सुम होठो पे
इल्म नहीं अब कहा हो तुम,
कैसी हो और किस जहाँ हो तुम,
पर अब भी हर शब् मेरी ही,
बाहों में आकर सोती हो,
कुछ देर लिपटकर रोती हो,
मेरे चेहरे को तकती हो,
फिर आँखों पे बोसा रखती हो.
अक्सर लोग बिछड़ जाते है,
अपनी राह को बढ़ जाते है,
इश्क कभी पर मरता नहीं,
वो जिंदा रहता है यु ही,
कभी गज़लों में, कभी बातो में,
कुछ यादो में, जज्बातो में,
उन बेमौसम बरसातो में,
और कुछ ऐसी रातो में.
बोझल आँखे, बिखरी जुल्फे,
कुछ सुस्त लकीरे माथे पे,
कुछ थका हुआ चेहरा फिर भी,
हलकी सी तबस्सुम होठो पे
इल्म नहीं अब कहा हो तुम,
कैसी हो और किस जहाँ हो तुम,
पर अब भी हर शब् मेरी ही,
बाहों में आकर सोती हो,
कुछ देर लिपटकर रोती हो,
मेरे चेहरे को तकती हो,
फिर आँखों पे बोसा रखती हो.
अक्सर लोग बिछड़ जाते है,
अपनी राह को बढ़ जाते है,
इश्क कभी पर मरता नहीं,
वो जिंदा रहता है यु ही,
कभी गज़लों में, कभी बातो में,
कुछ यादो में, जज्बातो में,
उन बेमौसम बरसातो में,
और कुछ ऐसी रातो में.
उधेड़ने लगा है...
कौन है जो जख्म पुराने उधेड़ने लगा है,
तेरे लहजे में मेरी गज़ले पढ़ने लगा है,
कीस सहरा में निचोड़ आउ ये अश्क-ए-समंदर,
बोझ पलको का बहोत ज्यादा बढ़ने लगा है.
कौन है जो जख्म पुराने उधेड़ने लगा है,
सुबह सुकून से गुजारी तेरे आँचल में माँ,
सूरज ज़िन्दगी का अब मगर चढ़ने लगा है.
कौन है जो जख्म पुराने उधेड़ने लगा है.
भर गया दिल खिलोने से शायद बच्चे का,
पहले खिलखिलाता था, अब उखड़ने लगा है.
कौन है जो जख्म पुराने उधेड़ने लगा है.
कौन है जो जख्म पुराने उधेड़ने लगा है,
तेरे लहजे में मेरी गज़ले पढ़ने लगा है,
कीस सहरा में निचोड़ आउ ये अश्क-ए-समंदर,
बोझ पलको का बहोत ज्यादा बढ़ने लगा है.
कौन है जो जख्म पुराने उधेड़ने लगा है,
सुबह सुकून से गुजारी तेरे आँचल में माँ,
सूरज ज़िन्दगी का अब मगर चढ़ने लगा है.
कौन है जो जख्म पुराने उधेड़ने लगा है.
भर गया दिल खिलोने से शायद बच्चे का,
पहले खिलखिलाता था, अब उखड़ने लगा है.
कौन है जो जख्म पुराने उधेड़ने लगा है.
Monday, 11 April 2011
कुछ अधूरी गज़ले...
मेरे आनेसे शकल उनकी, यु सवर आई है,
जैसे एक नज़्म जहन से रुख पे उतर आई है.
तेरे चेहरे को फकत हाथोसे छुआ था मैंने,
उम्र की धुंदली लकीर, फिरसे उभर आई है.
जैसे एक नज़्म जहन से रुख पे उतर आई है.
तेरी सोबत है, तो आबाद है गुलशन सारे,
या मेरी बेजान सी आँखों को नज़र आई है.
जैसे एक नज़्म जहन से रुख पे उतर आई है.
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लफ्जो में कड़वाहट भी, रंग अहसासों के फीके है,
मेरी गज़ले न लबो पे लो, सारे मिसरे अब तीखे है.
खामोश है सारे लफ्ज मगर, कागज़ में आवाज़ भी है,
पुरजो में फितरत है मेरी, लफ्जो में तेरे सालीखे है.
मेरी गज़ले न लबो पे लो, सारे मिसरे अब तीखे है.
मेरे आनेसे शकल उनकी, यु सवर आई है,
जैसे एक नज़्म जहन से रुख पे उतर आई है.
तेरे चेहरे को फकत हाथोसे छुआ था मैंने,
उम्र की धुंदली लकीर, फिरसे उभर आई है.
जैसे एक नज़्म जहन से रुख पे उतर आई है.
तेरी सोबत है, तो आबाद है गुलशन सारे,
या मेरी बेजान सी आँखों को नज़र आई है.
जैसे एक नज़्म जहन से रुख पे उतर आई है.
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लफ्जो में कड़वाहट भी, रंग अहसासों के फीके है,
मेरी गज़ले न लबो पे लो, सारे मिसरे अब तीखे है.
खामोश है सारे लफ्ज मगर, कागज़ में आवाज़ भी है,
पुरजो में फितरत है मेरी, लफ्जो में तेरे सालीखे है.
मेरी गज़ले न लबो पे लो, सारे मिसरे अब तीखे है.
Thursday, 3 February 2011
जरुरी तो नहीं
मंजर जो कल था वो अब हो, जरुरी तो नहीं,
मेरे लहजे में वो अदब हो, जरुरी तो नहीं.
तुझमे सलीका है, नजाकत है, वफादारी है,
पर तुम्हारे जैसे ही सब हो, जरुरी तो नहीं.
मेरे लहजे में वो अदब हो, जरुरी तो नहीं.
इसी पत्थर का निशाँ है मेरे पेशानी पे,
हर एक संग में रब हो, जरुरी तो नहीं.
मेरे लहजे में वो अदब हो, जरुरी तो नहीं.
वो पूछते है क्यों देखते हो, मुस्कुराते हो,
हर एक बात का मतलब हो, जरुरी तो नहीं.
मेरे लहजे में वो अदब हो, जरुरी तो नहीं.
लोग कहते है 'शफक' इश्क ने ये हाल किया,
वो एक ही सबब हो, जरुरी तो नहीं.
मेरे लहजे में वो अदब हो, जरुरी तो नहीं.
ख़ामोशी ने भी बढ़ायी है दुरिया यु तो
गुनाहगार बस लब हो, जरुरी तो नहीं.
मेरे लहजे में वो अदब हो, जरुरी तो नहीं.
मंजर जो कल था वो अब हो, जरुरी तो नहीं,
मेरे लहजे में वो अदब हो, जरुरी तो नहीं.
तुझमे सलीका है, नजाकत है, वफादारी है,
पर तुम्हारे जैसे ही सब हो, जरुरी तो नहीं.
मेरे लहजे में वो अदब हो, जरुरी तो नहीं.
इसी पत्थर का निशाँ है मेरे पेशानी पे,
हर एक संग में रब हो, जरुरी तो नहीं.
मेरे लहजे में वो अदब हो, जरुरी तो नहीं.
वो पूछते है क्यों देखते हो, मुस्कुराते हो,
हर एक बात का मतलब हो, जरुरी तो नहीं.
मेरे लहजे में वो अदब हो, जरुरी तो नहीं.
लोग कहते है 'शफक' इश्क ने ये हाल किया,
वो एक ही सबब हो, जरुरी तो नहीं.
मेरे लहजे में वो अदब हो, जरुरी तो नहीं.
ख़ामोशी ने भी बढ़ायी है दुरिया यु तो
गुनाहगार बस लब हो, जरुरी तो नहीं.
मेरे लहजे में वो अदब हो, जरुरी तो नहीं.
गज़ल
मेज पर रखी हुई एक अधमरी गज़ल के,
लफ्जो ने, जैसे एक दुसरे को पकड़ कर रखा था,
की कही हाथ छुट गए तो बिखर जायेंगे,
फिर कागज़ पे छिंटो के तरह बिखरे लफ्जो
के मायने ढूंडने पर भी शायद न मिले.
ऐसे ही कभी शिद्दत से पकड़ा था ना हाथ तुमने,
बड़ी जल्दी हाथ छुड़ाकर चली गयी तुम,
बिखरा पड़ा हु मै, अपनी ही ज़िंदगी में,
रोजाना कोशिश करता हु, ढूंडता हु ,
कोई मायना नज़र नहीं आता जीने का.
एक आखरी वफ़ा करदो मुझसे,
इन सारे लफ्जो को समेट्लो,
और दफनादो उसी आगाज पे,
जहा इन लफ्जोने एक दुसरे का हाथ थामा था.
मेज पर रखी हुई एक अधमरी गज़ल के,
लफ्जो ने, जैसे एक दुसरे को पकड़ कर रखा था,
की कही हाथ छुट गए तो बिखर जायेंगे,
फिर कागज़ पे छिंटो के तरह बिखरे लफ्जो
के मायने ढूंडने पर भी शायद न मिले.
ऐसे ही कभी शिद्दत से पकड़ा था ना हाथ तुमने,
बड़ी जल्दी हाथ छुड़ाकर चली गयी तुम,
बिखरा पड़ा हु मै, अपनी ही ज़िंदगी में,
रोजाना कोशिश करता हु, ढूंडता हु ,
कोई मायना नज़र नहीं आता जीने का.
एक आखरी वफ़ा करदो मुझसे,
इन सारे लफ्जो को समेट्लो,
और दफनादो उसी आगाज पे,
जहा इन लफ्जोने एक दुसरे का हाथ थामा था.
Tuesday, 11 January 2011
मंजर
मंजर ऐसे भी आये है जिन्दगी के सफ़र में,
हम खुद ही नागवार हुए अपनी नजर में.
तुझीसे छुपाऊ, सब तुझीको बताऊ,
कौन है तेरे अलावा मेरा पुरे शहर में.
हम खुद ही नागवार हुए अपनी नजर में.
रिश्ते फना होते है, निशाँ इश्क के नहीं,
तेरा जीकर अब भी आता है मेरे जीकर में.
हम खुद ही नागवार हुए अपनी नजर में.
Continue......
मंजर ऐसे भी आये है जिन्दगी के सफ़र में,
हम खुद ही नागवार हुए अपनी नजर में.
तुझीसे छुपाऊ, सब तुझीको बताऊ,
कौन है तेरे अलावा मेरा पुरे शहर में.
हम खुद ही नागवार हुए अपनी नजर में.
रिश्ते फना होते है, निशाँ इश्क के नहीं,
तेरा जीकर अब भी आता है मेरे जीकर में.
हम खुद ही नागवार हुए अपनी नजर में.
Continue......
Wednesday, 5 January 2011
एक खरोच आई थी
एक खरोच आई थी उस रिश्ते के सीने पे,
कई दिनों तक कुरेदते रहे वो दोनों,
उसका इलाज भी नहीं किया किसीने,
यु तो कहने को वो रिश्ता उनकी औलाद से कम न था,
पता नहीं ऐसा क्या हुआ की उसकी जख्म को अनदेखा किया,
बड़ी बेरुखी से पेश आते थे वो दोनों उससे,
उसकी चीखता, चिल्लाता, रोता रहता रात रातभर
कोई नहीं था पर चुप करने को, समझाने को.
उसका जख्म धीरे धीरे तासुर बन गया,
तकलीफ उस हद तक पहुच गयी की उसने अपनी साँसे रोक ली,
सुना है कल रात मौत हो गयी उस रिश्ते की,
बहोत देर तक रोते रहे वो दोनों, बहोत कोशिश की उसे जगाने की,
बहोत मनाया उसे, बहोत सहलाया उसके जख्म को,
दवा, दुआ दोनों बेअसर थी मगर,
वो रिश्ता नहीं जागा उस नींद से,
दम तोड़ दिया था उसने, आँखे बंद कर ली थी,
कोई वजह नहीं थी उसके पास शायद जीने की.
अब वो दोनों के पास कुछ भी नहीं बचा है.
अब वो दोनों अकेले रहते है,
जिन्दा है अब भी पर जी नहीं पाते.
वो रिश्ता एक जिंदगी था, जिसे वो दोनों जिते थे.
अब उस रिश्ते की कुछ तस्वीरे है दोनों के पास,
कुछ यादे है, कुछ किस्से है.
साँसों का बोझ बहोत भारी होता है,
पता नहीं कितने दिनों तक ढो पाएंगे अकेले.
एक खरोच आई थी उस रिश्ते के सीने पे.
Monday, 3 January 2011
किरदार निभाऊ
हर रिश्ते की बारीकी हर बार निभाऊ,
मै शख्स एक हु, कैसे इतने किरदार निभाऊ.
वो मुलाकात भर रहते बस खफा खफा,
उम्मीद की मै हसते हसते उनका इंतज़ार निभाऊ
मै शख्स एक हु, कैसे इतने किरदार निभाऊ.
जो बाते वो न सुन पाती, गजलो में लिखी,
अब वो कहती है मै अपने अशआर निभाऊ.
मै शख्स एक हु, कैसे इतने किरदार निभाऊ.
'शफक' जरुरी है कोई एक बात करे,
रिश्ते की तहजीब रखु या प्यार निभाऊ.
मै शख्स एक हु, कैसे इतने किरदार निभाऊ.
हर रिश्ते की बारीकी हर बार निभाऊ,
मै शख्स एक हु, कैसे इतने किरदार निभाऊ.
वो मुलाकात भर रहते बस खफा खफा,
उम्मीद की मै हसते हसते उनका इंतज़ार निभाऊ
मै शख्स एक हु, कैसे इतने किरदार निभाऊ.
जो बाते वो न सुन पाती, गजलो में लिखी,
अब वो कहती है मै अपने अशआर निभाऊ.
मै शख्स एक हु, कैसे इतने किरदार निभाऊ.
'शफक' जरुरी है कोई एक बात करे,
रिश्ते की तहजीब रखु या प्यार निभाऊ.
मै शख्स एक हु, कैसे इतने किरदार निभाऊ.
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